।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
आश्विन कृष्ण सप्तमी, वि.सं.२०७२, रविवार
सप्तमी-श्राद्ध
कारागार‒एक शिक्षालय
(नागपुरके कारागारमें किया गया एक प्रवचन)

 
जबतक परमात्माकी प्राप्ति न हो जाय, तबतक सभी जीव कैदी हैं । आप ऐसा न समझें कि हम बडे नीचे दर्जेके हैं । हम सभी परमात्माकी संतान हैं ! जैसे आप इस कारागारमें पराधीन होकर आये हैं, स्वाधीन होकर नहीं आये, ऐसे ही हम सब-के-सब इस संसारमें पराधीन होकर ही आये हैं और यहाँ आकर अपने-अपने किये हुए कर्मोंका फल भोगते हैं । जबतक कर्मोंके परतन्त्र होकर उनका फल भोगते हैं, तबतक हम कैदी ही हैं ।

मनुष्ययोनि ही ऐसी है, जिसमें आकर मनुष्य परमात्मतत्त्वको प्राप्त कर सकता है । सदाके लिये स्वाधीन हो जाय, पराधीनता सर्वथा मिट जाय, इसके लिये ही मनुष्य-शरीर मिला है । इसमें सुख और दुःख‒दो तरहके भोग होते हैं । सुखके भोगमें मनुष्य समझता है कि मैं स्वाधीन हूँ और दुःखके भोगमें वह समझता है कि मैं पराधीन हूँ । परंतु यह बेसमझीकी बात है । अगर हम सुखके भोगमें स्वतन्त्र होते तो फिर सुख-ही-सुख भोगते, दुःख भोगते ही नहीं । परन्तु यह अपने हाथकी बात नहीं है । हमें सुख और दुःख दोनों ही भोगने पड़ते हैं ।

दुःखके भोगमें एक विलक्षण बात है‒सुखके भोगमें तो अपने पुण्योंका नाश होता है, पर दुःखके भोगमें पापोंका नाश होता है ! आप यहाँ पापोंका नाश करनेके लिये आये हैं । कोई-न-कोई पाप होता है, तभी मनुष्य कैदमें आता है । कैदकी जितनी अवधि है, उतनी अवधितक कैदमें रहनेपर उसके पाप नष्ट होते हैं और पाप नष्ट होनेसे वह पवित्र बनता है । इसलिये अब आपको और हमको, सबको चाहिये कि दुःखोंसे छूटनेके लिये पाप-अन्याय, दुर्गुण-दुराचार, शास्त्रमर्यादासे विरुद्ध कोई काम न करें । इस बातकी शिक्षा यहाँ आपको क्रियारूपसे मिलती है ।

यह कारागार एक शिक्षालय है । इसमें यह शिक्षा मिलती है कि अब आगे ऐसा पाप नहीं करें । संसारमात्रमें बीमारीसे, घाटा लगनेसे, अपमान होनेसे, निंदा होनेसे जो दुःख होता है, वह दुःख शिक्षा देनेके लिये होता है कि हमने कभी-न-कभी पाप किया है, उसीका फल यह दुःख है । इसलिये अब आगे कोई पाप नहीं करेंगे‒यह शिक्षा लेनी चाहिये । पुराने पापोंका फल भोगनेसे वे पाप नष्ट हो जाते हैं । पाप नष्ट होनेपर हम शुद्ध, निर्मल हो जाते हैं ।

यहाँ जो अनुकूलता आती है, नफा हो जाता है, धन मिल जाता है‒यह सब पुण्यका फल है । जो प्रतिकूलता आती है, घाटा लग जाता है, कोई मर जाता है, बीमारी आ जाती है‒यह सब पापका फल है । पुण्योंका फल भोगनेके लिये स्वर्गमें जाते हैं और वहाँका सुख भोगते हैं । सुख भोगनेसे पुण्योंका नाश हो जाता है और पुनः मृत्युलोकमें गिरना पड़ता है‒‘क्षीणे पुण्ये मर्त्यलोकं विशन्ति ।’ (गीता ९ । २१) पाप नष्ट होते हैं दुःखसे तथा पुण्य नष्ट होते हैं सुखसे ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘वास्तविक सुख’ पुस्तकसे