।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
आश्विन कृष्ण दशमी, वि.सं.२०७२, बुधवार
दशमी-श्राद्ध, एकादशी-व्रत कल है
कारागार‒एक शिक्षालय
(नागपुरके कारागारमें किया गया एक प्रवचन)


(गत ब्लॉगसे आगेका)

आपको ज्यादा बोलनेका काम भी नहीं पड़ता । आपके जो अफसर हैं, उनको तो शासन करना पड़ता है, बोलना पड़ता है; परंतु आपके लिये तो कुछ बोलनेकी आवश्यकता नहीं । इसलिये आप विशेषतासे नाम-जप करें । थोड़ी-थोड़ी देरके बाद ‘हे नाथ ! मैं आपको भूलूँ नहीं; हे नाथ ! आपके चरणोंमें मेरा प्रेम हो जाय’‒इस प्रकार भगवान्‌से प्रार्थना करते रहें और नाम-जप करते रहें ।

हृदयसे सबका भला चाहें । किसीका भी बुरा न चाहें । किसीने आपपर मुकदमा करके आपको कैद करा दी है तो उसका भी बुरा न चाहें; क्योंकि उसने आपको शुद्ध बनानेके लिये ही ऐसा किया है । आप शुद्ध बन जायँगे तो आपको बार-बार जन्म नहीं लेना पड़ेगा, बार-बार कैदमें नहीं आना पड़ेगा । माँके गर्भमें रहना भी एक बड़ा भारी कैदखाना है । वहाँ जीव बड़े कष्टसे रहता है, बहुत दुःख पाता है; परंतु पापोंके कारण वहाँ बार-बार आना पड़ता है । इसलिये कारणको ही मिटा दो तो कार्य अपने-आप मिट जायगा‒‘मूलाभावे कुतः शाखा ।’ जब मूल ही कट जायगा तो शाखा कैसे निकलेगी ? अतः पाप, अन्याय, दुराचार आदि करना ही नहीं है । न चोरी करनी है, न डाका डालना है, न किसीका अनिष्ट करना है । तनसे, मनसे, वचनसे जो दूसरोंको दुःख देता है, उसको दुःख पाना ही पड़ेगा‒यह एकदम सच्ची बात है । जैसा बीज बोया जाता है, वैसा ही वृक्ष होता है और वृक्षसे फिर वैसा ही बीज आता है । ऐसे ही जो दूसरोंको दुःख देता है, उसको दुःख पाना ही पड़ता है । दूसरोंको दुःख देकर चाहे अभी सुखी हो जाय, दूसरोंका धन छीनकर चाहे अभी धनी बन जाय, दूसरोंको मारकर चाहे अभी राजी हो जाय; परंतु अन्तमें दुःख पाना ही पड़ेगा, बच सकेगा नहीं । परमात्माके यहाँ बड़ा इंसाफ है, बड़ा न्याय है । यहाँ तो झूठ-कपट करके भी आदमी दण्डसे बच सकता है, पर परमात्माके यहाँ नहीं बच सकता । वहाँ झूठे गवाह नहीं मिलेंगे और वकील-मुखत्यार भी नहीं मिलेंगे । वहाँ तो अपने किये हुएके अनुसार दण्ड भोगना पड़ेगा ।

आप थोड़ा-सा ध्यान दें । जैसे पंखा चलता है, बत्ती जलती है, लाउडस्पीकरसे आवाज होती है‒ये सब काम बिजलीसे होते हैं । जब बिजलीघरका आदमी आता है, तब वह आपलोगोंसे यह नहीं पूछता कि आपने कितनी बिजली जलायी, कैसे जलायी, कब जलायी ? बिजलीका यन्त्र (मीटर) लगा रहता है । उस यन्त्रको देखकर वह आपके पास बिल भेज देता है कि इतने नम्बर (यूनिट) आये हैं, इतने पैसे हुए । वे पैसे आपको चुकाने पड़ते हैं । इसी तरहसे आप, हम जितने मनुष्य हैं, उनके भीतर भी एक मीटर रखा हुआ है ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘वास्तविक सुख’ पुस्तकसे