।। श्रीहरिः ।।



आजकी शुभ तिथि
कार्तिक कृष्ण अष्टमी, वि.सं.२०७२, बुधवार


(गत ब्लॉगसे आगेका)

जिसके मनमें सम्मान आदिकी इच्छा है, उसकी कितनी इज्जत है और जिसके मनमें सम्मान आदिकी इच्छा नहीं है, उसकी कितनी इज्जत है यह आपको दीखता है कि नहीं ? जिसके मनमें सम्मानकी, धनकी इच्छा नहीं है, जो कुछ भी नहीं चाहता, उसकी बेइज्जती हो सकती है क्या ? ‘जिनको कछू न चाहिये, सो साहनपति साह’ । लोग उसके आगे नतमस्तक हो जायँगे !

भगवान् श्रीराम हनुमानजीसे कहते हैं कि तू धनिक है और मैं तेरा कर्जदार हूँ, तू मेरेसे खत लिखा ले ! जो ले तो ले, पर देनेके लिये पासमें हो नहीं, वही खत लिखाया करता है । भगवान् कहते हैं कि हे हनुमान् ! मैं तेरा बदला चुकानेमें असमर्थ हूँ, मैं दे नहीं सकता, इसलिये तू खत लिखा ले । मैं तेरा कर्जदार हूँ । कर्जदार होनेमें कारण क्या है ? भगवान् इसका स्पष्ट उत्तर देते हैं‒

मदङ्गे जीर्णतां  यातु  यत्  त्वयोपकृतं कपे ।
नरः प्रत्युपकाराणामापत्स्वायाति पात्रताम् ॥
                                  (वाल्मीकि उत्तर ४० । २४)

तुमने जो मेरा उपकार किया है, यह कर्जा मेरेपर ही रहने दे । मैं कर्जा उतारना नहीं चाहता । मैं तो सदा ही कर्जदार बना रहना चाहता हूँ । कारण कि जो उपकारका बदला चुकाना चाहता है, वह विपत्ति चाहता है कि इसपर विपत्ति आये तो मैं इसका उपकार करूँ, इसकी सहायता करूँ । तेरेको बाप घरसे निकाल दे, स्त्रीको राक्षस ले जाय, साथ देनेवाला कोई नहीं हो, तब मैं तेरी सहायता करूँ ! अतः तेरेपर कभी विपत्ति आये ही नहीं और मैं सदा ही तेरा कर्जदार बना रहूँ ! इस प्रकार अगर मनमें कोई भी चाहना न हो, तो भगवान् ऋणी हो जायँ ! भगवान् शंकरने रामजीकी सेवा करनेके लिये हनुमान्‌जीका ही रूप धारण क्यों किया ? उन्होंने सोचा कि सेवा करनेके लिये बन्दरके समान कोई नहीं हो सकता; क्योंकि उसको न रोटी चाहिये, न कपड़े चाहिये, न मकान चाहिये; कुछ भी नहीं चाहिये । पत्ते खा ले, वृक्षोंपर रहे और कपड़ोंकी जरूरत नहीं ! छोटे-से-छोटा और बड़े-से-बड़ा सब काम रामजीका करेंगे और लेंगे कुछ भी नहीं ।

जब राक्षसोंने सबको मूर्च्छित कर दिया, तो सबसे पहले जाम्बवान् जगे । जाम्बवान्‌ने जगते ही पूछा कि हनुमान् जीवित हैं या नहीं ! यह नहीं पूछा कि रामजी जीवित हैं या नहीं । कितनी विलक्षण बात है ! हनुमान्‌जी जीवित हैं तो सब जी जायँगे, चिन्ताकी कोई बात नहीं । इस प्रकार सबके प्राण हनुमान्‌जीके अधीन हैं । परन्तु उनकी भी पोल बताऊँ आपको ! जब हनुमान्‌जी संजीवनी लानेके लिये चले, तब उन्होंने अपने बलका बखान किया कि अभी लेकर आता हूँ‒‘चला प्रभंजन सुत बल भाषी ।’ (मानस ६ । ५६ । १) । इससे क्या हुआ ? रातके समय प्यास लग गयी और कालनेमि राक्षससे ठगे गये, फिर संजीवनीका पता नहीं लगा और संजीवनी ले आये तो भरतजीका बाण लगा ! परन्तु दिनके समय लंकामें आग लगा दी, तब प्यास नहीं लगी ! कारण क्या था ? जब लंकामें गये तो पहले रघुनाथजीको याद किया‒‘बार बार रघुबीर संभारी’ (मानस ५ । १ । ३) ।

‒‘स्वाधीन कैसे बनें ?’ पुस्तकसे