।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी, वि.सं.२०७२, मंगलवार
हनुमज्जयन्ति
गीतामें आये परस्पर-विरोधी पदोंका तात्पर्य


(गत ब्लॉगसे आगेका)

(१६) यह सब संसार मेरेमें अव्यक्तरूपसे व्याप्त है और सम्पूर्ण प्राणी मेरेमें स्थित हैं; परंतु मैं उनमें स्थित नहीं हूँ और वे प्राणी भी मेरेमें स्थित नहीं हैं, (९ । ४-५)‒ यह कैसे ?

जहाँ प्राणियोंकी स्वतन्त्र सत्ता मानकर चलते हैं, वहाँ तो सब प्राणियोंमें भगवान् हैं और सब प्राणी भगवान्‌में हैं । परंतु जहाँ प्राणियोंकी, संसारकी स्वतन्त्र सत्ता नहीं मानी जाती, वहाँ प्राणियोमें भगवान् नहीं हैं और भगवान्‌में प्राणी नहीं हैं, प्रत्युत सब कुछ भगवान् ही हैं ।

(१७) मैं अव्यक्तरूपसे सब जगह व्याप्त हूँ (९ । ४); भक्त भक्तिपूर्वक पत्र, पुष्प, फल आदि जो कुछ भी देता है, उसको मैं खा लेता हूँ (९ । २६); तो जो अव्यक्त है, उसका खाना-पीना कैसे ? और जो खाता-पीता है, वह अव्यक्त कैसे ?

‘पृथ्वी’ स्थूलरूपसे व्यक्त और गन्धरूपसे अव्यक्त है । जलनदी, ओले, बर्फ आदिके रूपसे व्यक्त और परमाणुरूपसे (आकाशमें रहते हुए) अव्यक्त है । तेज’ सूर्य, चन्द्रमा और अग्निरूपसे व्यक्त तथा दियासलाई, काष्ठ आदिमें अव्यक्त है । इस प्रकार जब पृथ्वी, जल, तेज आदि भौतिक पदार्थ भी व्यक्त और अव्यक्तदोनों होते हैं, तो फिर भगवान् व्यक्त और अव्यक्त‒दोनों होते हों, इसमें आश्चर्य ही क्या है ? तात्पर्य है कि भगवान् अव्यक्तरूपसे व्यापक भी हैं और भक्तोंके भावोंके अनुसार व्यक्त भी है; क्योंकि भगवान्‌का यह नियम है‒ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम्’ (४ । ११)

(१८) भगवान् सम्पूर्ण जगत्‌में व्याप्त हैं (९ । ४); भगवान् सम्पूर्ण प्राणियोंके हृदयमें अच्छी तरहसे स्थित हैं (१५ । १५) तो जो सर्वव्यापक है, वह एक देश हृदयमें अच्छी तरहसे स्थित कैसे ?

भगवान् तो सब जगह व्यापक, सबमें ओतप्रोत हैं ही, पर सब जगह, सब चीजोंमें भगवान्‌का अनुभव करनेके लिये हृदयके समान इतनी स्वच्छता नहीं है । हृदय स्वच्छ होनेपर हृदयमें भगवान्‌का अनुभव होता है और हृदयमें अनुभव होनेपर भगवान् सब जगह हैं’‒इसका अनुभव हो जाता है । तात्पर्य है कि जैसे तारमें सब जगह विद्युत् होनेपर भी लट्‍‌‍टू-(बल्ब-) के बिना प्रकाश नहीं होता, ऐसे ही भगवान्‌के सब जगह व्यापक होनेपर भी हृदयके बिना उनका अनुभव नहीं होता । इसी आशयसे ‘मैं सबके हृदयमें अच्छी तरहसे स्थित हूँ’ यह कहा गया है ।  

  (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘गीता-दर्पण’ पुस्तकसे