।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा, वि.सं.२०७२, गुरुवार
अन्नकूट, गोवर्धनपूजा
गीतामें आये परस्पर-विरोधी पदोंका तात्पर्य


(गत ब्लॉगसे आगेका)

(२२) परमात्मा ज्ञेय’ अर्थात् जाननेयोग्य है (१३ । १२); परमात्मा अविज्ञेय’ अर्थात् जाननेका विषय नहीं है (१३ । १५)‒यह कैसे ?

जानना दो तरहका होता है‒करण-निरपेक्ष और करण-सापेक्ष । जो इन्द्रियाँ, मन, बुद्धि आदि करणोंके द्वारा नहीं जाना जा सकता, वह करण-निरपेक्ष होता है और जो करणोंके द्वारा जाना जा सकता है, वह करण-सापेक्ष होता है । परमात्मतत्त्वका ज्ञान करण-निरपेक्ष होता है अर्थात् वह स्वयंके द्वारा ही जाना जाता है, इसलिये वह ज्ञेय’ है और वह करणोंके द्वारा जाननेमें नहीं आता, इसलिये वह अविज्ञेयहै ।

(२३) वह परमात्मा सम्पूर्ण इन्द्रियों और उनके विषयोंको प्रकाशित करनेवाला है तथा वह सम्पूर्ण इन्द्रियोंसे रहित है (१३ । १४)‒यह कैसे ?

जैसे एक-एक इन्द्रियसे एक-एक विषयका ज्ञान होता है, पर मनको पाँचों इन्द्रियोंका, उनके विषयोंका और उन विषयोंमें एक-एक विषयमें क्या कमी है, क्या घटिया है, क्या बढ़िया है आदिका ज्ञान होता है अर्थात् मन पाँचों इन्द्रियोंको तथा उनके विषयोंको प्रकाशित करता है । मनको ऐसा ज्ञान होते हुए भी मनमें पाँचों इन्द्रियाँ नहीं हैं । ऐसे ही वह परमात्मा सबको, संसारमात्रको प्रकाशित करता है, पर वह इन्द्रियोंसे रहित है अर्थात् उस परमात्मामें इन्द्रियाँ नहीं है ।

(२४) वह परमात्मा आसक्तिरहित है और वह सबका भरण-पोषण करनेवाला है (१३ । १४)‒यह कैसे ?

जैसे माता-पिता अपनी संतानका पालन-पोषण करते हैं, उसकी रक्षा करते हैं, पर करते हैं आसक्तिपूर्वक ही । ऐसे ही परमात्मा सबका भरण-पोषण करता है, उनकी रक्षा करता है, पर करता है आसक्तिरहित होकर ही । तात्पर्य है कि उस परमात्माकी किसीमें भी आसक्ति नहीं है, सबसे निर्लिप्तता है ।

(२५) वह परमात्मा गुणोंसे रहित है और वह गुणोंका भोक्ता है (१३ । १४)‒यह कैसे ?

वह परमात्मा सत्त्व, रज और तम‒इन तीनों गुणोंको काममें लाता है अर्थात् तीनों गुणोंको लेकर सृष्टि-रचना आदि सब कार्य करता है । अतः उसको गुणोंका भोक्ता कहा गया है । परंतु उस परमात्माकी किसी भी गुणके साथ किञ्चिन्मात्र भी लिप्तता नहीं होती, इसलिये उसको गुणोंसे रहित कहा गया है ।

  (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘गीता-दर्पण’ पुस्तकसे