।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी, वि.सं.२०७२, सोमवार
धन्वन्तरी-जयन्ती, धनतेरस, नरक-चतुर्दशी
गीतामें आये परस्पर-विरोधी पदोंका तात्पर्य


(गत ब्लॉगसे आगेका)

(१३) तीनों गुणोंसे सभी मोहित हैं (७ । १३); तमोगुण सबको मोहित करनेवाला है (१४ । ८)‒यह कैसे ?

सत्त्वगुणका स्वरूप निर्मल, रजोगुणका स्वरूप रागात्मक और तमोगुणका स्वरूप मोहनात्मक कहा गया है । तात्पर्य है कि जहाँ तीनों गुणोंका भेद किया गया है, वहाँ तमोगुणका स्वरूप मोहनात्मक बताया गया है । वास्तवमें तो सत्त्व, रज और तम‒ये तीनों ही गुण मोहित करनेवाले हैं । सत्त्वगुण ज्ञान और सुखकी आसक्तिसे, रजोगुण कर्मोंकी आसक्तिसे और तमोगुण स्वरूपसे ही मनुष्योंको मोहित करता है (१४ । ६-८) । अतः जो ऊँचा-से-ऊँचा ब्रह्मलोकतकका भी सुख चाहता है, वह भी गुणोंसे मोहित है ।

(१४) जिनका ज्ञान मायाके द्वारा हरा गया है जिन्होंने आसुरभावका आश्रय ले रखा है, ऐसे दुराचारी (पापी) भगवान्‌की शरण नहीं होते (७ । १५); दुराचारी-से-दुराचारी भी भगवान्‌की शरण होता है (९ । ३०)‒यह कैसे ?

जो वेद, शास्त्र, पुराण, भगवान् और उनके सिद्धान्तसे विरुद्ध चलनेवाला है, दुर्गुणी है, दुराचारी है, ऐसे मनुष्यका स्वाभाविक भगवान्‌की तरफ चलनेका, भगवान्‌की शरण होनेका स्वभाव नहीं होता । परंतु वह भी किसी कारणविशेषसे अर्थात् किसी संतकी कृपासे, किसी स्थान या तीर्थके प्रभावसे, किसी पूर्वपुण्यके उदय होनेसे अथवा किसी विपत्तिमें फँस जानेसे भगवान्‌की शरण हो सकता है । तात्पर्य यह है कि सामान्य रीतिसे तो पापी मनुष्य भगवान्‌की शरण नहीं होता (७ । १५), पर किसी कारणविशेषसे वह भगवान्‌की शरण हो सकता है (९ । ३०) ।

(१५) परमात्मा अचिन्त्य है‒अचिन्त्यम्’, उसका जो चिन्तन (स्मरण) करता है‒‘अनुस्मरेत्’ (८ । ९), तो जो अचिन्त्य है, उसका चिन्तन कैसे ? और जिसका चिन्तन होता है, वह अचिन्त्य कैसे ?

यद्यपि वह परमात्मा चिन्तनका विषय नहीं है, तथापि उस परमात्माका अभाव नहीं है । वह परमात्मा भावरूपसे सब जगह परिपूर्ण है । अतः ‘वह परमात्मतत्त्व अचिन्त्य है’‒ऐसी दृढ़ धारणा ही उस परमात्माका चिन्तन है । तात्पर्य है कि यद्यपि वह परमात्मा चिन्तनका विषय नहीं है, तथापि चिन्तन करनेवाला उस तत्त्वको लक्ष्य बना सकता है ।  

  (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘गीता-दर्पण’ पुस्तकसे