।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
मार्गशीर्ष शुक्ल दशमी, वि.सं.२०७२, रविवार
एकादशी-व्रत कल है
गीता-मंथन


गीता उपनिपदोंका सार हे । पर वास्तवमें गीताकी बात उपनिपदोंसे भी विशेष है । कारणकी अपेक्षा कार्यमें विशेप गुण होते है; जैसे‒आकाशमें केवल एक गुण ‘शब्द’ है, पर उसके कार्य वायुमें दो गुण ‘शब्द और स्पर्श’ हैं ।

वेद भगवान्‌के निःश्वास हैं और गीता भगवान्‌की वाणी है । निःश्वास तो स्वाभाविक होते है, पर गीता भगवान्‌ने योगमें स्थित होकर कही है । अतः वेदोंकी अपेक्षा भी गीता विशेष है ।

सभी दर्शन गीताके अर्न्तगत है, पर गीता किसी दर्शनके अर्न्तगत नहीं है । दर्शनशास्त्रमें जगत क्या है, जीव क्या है और ब्रह्म क्या है‒यह पढाई होती है । परन्तु गीता पढाई नहीं कराती, प्रत्युत अनुभव कराती हे ।

गीतामें किसी मतका आग्रह नहीं है, प्रत्युत केवल जीवके कल्याणका ही आग्रह है ।

मतभेद गीतामें नहीं है, प्रत्युत टिकाकारोंमें है ।

गीतामें भगवान् साधकको समग्रकी तरफ ले जाते हैं ।

सब कुछ परमात्माके ही अर्न्तगत है, परमात्माके सिवाय किचिन्मात्र भी कुछ नहीं है‒इसी भावमें सम्पूर्ण गीता है ।

गीताका तात्पर्य ‘वासुदेवः सर्वम्’ में है । सबकुछ परमात्मा ही हैं‒यह खुले नेत्रोंका ध्यान है । इसमें न आँख बन्द करनेकी  (ध्यान) जरुरत है, न कान बन्द करनेकी (नादानुसंधान) की जरुरत है, न नाक बन्द करनेकी (प्राणायाम) जरुरत है ! इसमें न संयोगका असर पड़ता है, न वियोगका; न किसीके आनेका असर पड़ता है, न किसीके जानेका । सब कुछ परमात्मा है ही तो फिर दूसरा कहाँसे आये ? कैसे आये ?

गीता कर्मयोगको ज्ञानयोगकी अपेक्षा विशेष मानती है, कारणकी ज्ञानयोगके बिना तो कर्मयोग हो सकता है (गीता ३ । २०), पर कर्मयोगके बिना ज्ञानयोग होना कठिन है (गीता ५ । ६) ।

गीता व्यवहारमें परमार्थकी कला बताती है, जिसमें मनुष्य प्रत्येक परिस्थितिमें रहते हुए तथा शास्त्रविहित सब तरहका व्यवहार करते हुए भी अपना कल्याण कर सके ।

गीताकी दृष्टिमें मन लगाना कोई ऊँची चीज नहीं है । गीताकी दृष्टिमें ऊँची चीज है‒समता । दूसरे लक्षण आयें या न आयें, जिसमें समता आ गयी, उसको गीता सिद्ध कह देती है । जिसमें दूसरे सब लक्षण आ जायँ और समता न आये, उसको गीता सिद्ध नहीं कहती ।

गीताका अध्ययन करनेसे ऐसा मालूम देता है कि साधनकी सफलतामें केवल भगवत्परायणता ही कारण है । अतः गीतामें भगवत्परायणतकी बहुत महिमा गायी है ।

गीतामें भगवान्‌ने विविध युक्तियोंसे कर्मयोगका सरल और सांगोपांग विवेचन किया है ।