।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
मार्गशीर्ष कृष्ण चतुर्दशी, वि.सं.२०७२, गुरुवार
राग-द्वेषसे रहित स्वरूप


(गत ब्लॉगसे आगेका)

श्रोताजबतक क्रिया होगी, तबतक तो दुःखी होते रहेंगे !

स्वामीजीभले ही दुःखी हो जाओ या सुखी हो जाओ, पर दुःखमें भी आप वही रहते हो, सुखमें भी आप वही रहते हो । सुख-दुःख तो होते हैं, पर आप रहते हो । साफ और सीधी बात है ! यह अन्वेषण है, निर्माण नहीं है । संसारका काम देरीसे होता है, उसमें समय लगता है, पर इसमें समय नहीं लगता । आज मैंने जो बात कही है, उसको समझनेमें क्या वर्ष लगता है ? हाँ, आप मान लोगे कि समय लगेगा तो जरूर समय लगेगा; क्योंकि आप और हम भगवान्रूपी कल्पवृक्षके नीचे हैं । अगर आप मान लें कि ये राग-द्वेषादि मेरेमें हैं ही नहीं तो समय लगनेकी क्या बात है ? कही और चट मानी ! सीधी बात है । सत्संगमें आनेवाले भाई-बहनोंकी कई बातें मैंने सुनी हैं । जो पहले रोते थे, कुछ दिन सत्संगमें आनेके बाद उनका रोना बन्द हो गया ! तात्पर्य है कि सत्संगकी बातोंमें एक ताकत है । यह कोई तमाशा नहीं है । परन्तु आप तो कमर कसकर तैयार हैं कि कुछ भी कहो, हम तो नहीं मानेंगे ! अब बताओ, मैं क्या करूँ ? आपको नहीं जँचती हो तो शंका करो । आप कहते हैं कि हमारेपर असर पड़ जाता है । इन्द्रियाँ और उनके विषयोंका सम्बन्ध होते ही असर पड़ता है । किसीके राग-द्वेष ज्यादा होते हैं, किसीके कम होते हैं । सबके अलग-अलग संस्कार हैं, अलग-अलग अभ्यास है । परन्तु असर पड़नेपर भीराग-द्वेष हमारेमें हैं’‒यह आपने किस आधारपर माना ? इनको आप अपनेमें मानोगे तो कहनेवाला कितना ही जोर लगा ले, आपमें रत्तीमात्र भी फर्क नहीं पड़ेगा । चोर-डाकू तो जबर्दस्ती करते हैं, उनको आप निमन्त्रण दे दो तो फिर वे सवार हो ही जायेंगे ! ऐसे ही आपने राग-द्वेषको अपनेमें मान लिया, उनको निमन्त्रण दे दिया तो अब वे जायँगे नहीं ।

श्रोतामृत्युके बाद राग-द्वेषके संस्कार तो रह ही जाते हैं !

स्वामीजीमृत्यु ही क्या, चौरासी लाख योनियाँ और नरक भोग लो तो भी राग-द्वेष मिटेंगे नहीं; क्योंकि इनको आपने अपनेमें मान लिया, अब आप मिटो तो ये मिटें ! आप नित्य परमात्माके अंश हो; अतः आप जिसको पकड़ोगे, वह भी नित्य दीखने लग जायगा ! आगमें ठीकरी रख दो, कंकड़ रख दो, लकड़ी रख दो, कोयला रख दो, सब चमकने लगेंगे । ऐसे ही आप जिसको अपनेमें मान लोगे, वह चमकने लग जायगा । राग-द्वेष नित्य नहीं हैं, पर आप नित्य हो; अतः आप राग-द्वेषको अपनेमें मान लोगे तो वे भी नित्य दीखने लग जायँगे ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)

‒‘नित्ययोगकी प्राप्ति’ पुस्तकसे