।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
मार्गशीर्ष अमावस्या, वि.सं.२०७२, शुक्रवार
राग-द्वेषसे रहित स्वरूप


(गत ब्लॉगसे आगेका)

श्रोतामहाराजजी, लोग कहते हैं कि सत्संगमें आते पचास-साठ वर्ष हो गये, पर राग-द्वेष मिटे नहीं !

स्वामीजीमैं कहता हूँ कि सौ वर्ष हो गये, आपने राग-द्वेषको मिटाया ही नहीं ! राग-द्वेषको पकड़कर सौ वर्ष सत्संग कर लो, फिर कहो कि राग-द्वेष तो रहते ही हैं ! राग-द्वेषको मिटाओगे तो वे मिटेंगे । क्या बिना मिटाये ही मिट जायँगे ? मेरी तो ऐसी धारणा है कि एक दिन भी ठीक तरहसे बात सुने तो उसमें फर्क पड़ जायगा !

श्रोताफर्क पड़नेसे क्या होगा ? सर्वथा मिटने चाहिये ।

स्वामीजीतो जबतक सर्वथा नहीं मिटें, तबतक पिण्ड मत छोड़ो, इनके पीछे पड़ जाओ । अनेक जन्मोंकी पड़ी हुई बातमें एक दिन सुननेसे भी फर्क पड़ता है तो अनेक जन्मोंकी बात सच्ची हुई या एक दिनकी बात सच्ची हुई ?

श्रोताजो मान रखा है, उसको न माननेमें किसीकी कोई जरूरत नहीं है क्या ?

स्वामीजीआपकी ही जरूरत है ! आप पकड़े रहोगे तो मैं कह दूँ या ब्रह्माजी कह दें, कुछ फर्क नहीं पड़ेगा । अपनी मानी हुई बातको दूसरा कैसे मिटा सकता है ? आपने अपनेको गृहस्थी मान रखा है तो दूसरेके कहनेसे अपनेको गृहस्थी मानना कैसे छोड़ दोगे ? मैं अपनेको साधु मानता हूँ, पर कोई उपदेश दे कि तुम साधु नहीं हो तो कैसे मान लूँगा मैं ?

श्रोताअभी जो आपने कहा, उसको माननेमात्रसे काम चल जायगा ?

स्वामीजीमाननेके सिवाय और किससे काम चलेगा ? यह मेरी स्त्री हैऐसा माननेके सिवाय और कोई प्रमाण हो तो बताओ ! सिर्फ माननेसे बेटा-पोता हो जायगा, सब कुछ हो जायगा ।

एक सीखना होता है, एक अनुभव करना होता है । नया काम सीखनेमें देरी लगती है, पर जो पहलेसे ही है, उसका अनुभव करनेमें किस बातकी देरी ? जैसा मैं कहता हूँ, उसको आप शंकारहित होकर मान लो तो पट दीखने लग जायगा, अनुभव हो जायगा; क्योंकि बात है ही ऐसी । सेठजीने कहा था कि ज्ञानकी, तत्त्वकी बात कठिन हैयह मेरी समझमें नहीं आया; इसमें कठिनता किस बातकी ? कठिनताकी बात ही नहीं है । परन्तु जब लोगोंपर आजमाइश की और देखा कि उनको ज्ञान हुआ नहीं, तब जबर्दस्ती माना कि कठिन है ! आपने कठिन मान लिया तो अब आपकी मान्यताको कौन छुड़ा सकता है ? किसकी ताकत है कि छुड़ा दे ?

पंढरपुरमें चातुर्मास हुआ था । उसमें मैंने एक दिन कह दिया कि तत्त्वकी प्राप्ति तो बड़ी सरल बात है । इसको सुनकर कुछ लोग कहने लगे कि तुकारामजी महाराजने ऐसा-ऐसा कहा है, तत्त्वप्राप्तिमें तो कठिनता है । तब मैंने एक बात कही कि मैं मराठी जानता नहीं, महाराष्ट्रके सन्तोंकी वाणी मैंने पढ़ी नहीं; परन्तु मेरी एक धारणा है कि ज्ञानेश्वरजी, तुकारामजी आदि सन्तोंको भगवत्प्राप्ति हुई थी, वे तत्त्वज्ञ पुरुष थे । तत्त्वज्ञ पुरुषके भीतर यह भाव रह सकता ही नहीं कि तत्त्वप्राप्ति कठिन है । अतः उनकी वाणीमें ‘तत्त्वकी प्राप्ति सुगमतासे होती है’यह बात नहीं आये, ऐसा हो ही नहीं सकता ! उनकी वाणीमें यह बात जरूर आयेगी कि तत्त्वप्रासि सुगम है । इतनेमें एक आदमी बोल गया वाणी कि ऐसे सुगम लिखा है उसमें ! लिखे बिना रह सकते नहीं । जो वास्तविक बात है, उसको वे कैसे छोड़ देंगे ? तत्त्वको बनाना थोड़े ही है, वह तो ज्यों-का-त्यों विद्यमान है । फिर उसकी प्राप्तिमें कठिनता किस बातकी ? राग-द्वेष हमारेमें हैंयह मान्यता दृढ़ कर ली है, इसीलिये तत्त्वकी प्राप्ति कठिन दीखती है ।

नारायण !     नारायण !!     नारायण !!!

‒‘नित्ययोगकी प्राप्ति’ पुस्तकसे