।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
मार्गशीर्ष शुक्ल त्रयोदशी, वि.सं.२०७२, बुधवार
सच्चा गुरु कौन ?


(१९ दिसम्बरके ब्लॉगसे आगेका)

भगवान्‌की यह एक विलक्षण उदारता, दयालुता है कि जो उनको नहीं मानता, उनका खण्डन करता है अर्थात् नास्तिक है, उसके भीतर भी यदि तत्त्वको, अपने स्वरूपको जाननेकी तीव्र जिज्ञासा हो तो उसको भी भगवत्कृपासे ज्ञान मिल जाता है ।

                   जिससे प्रकाश मिले, ज्ञान मिले, सही मार्ग दीख जाय, वह गुरु-तत्त्व है । वह गुरु-तत्त्व सबके भीतर विराजमान है । वह गुरु-तत्त्व जिस व्यक्ति, शास्त्र आदिसे प्रकट हो जाय, उसीको अपना गुरु मानना चाहिये ।

                   वास्तवमें भगवान्‌ ही सबके गुरु हैं; क्योंकि संसारमें जिस-किसीको ज्ञान, प्रकाश मिलता है, वह भगवान्‌से ही मिलता है । वह ज्ञान जहाँ-जहाँसे, जिस-जिससे प्रकट होता है अर्थात् जिस व्यक्ति, शास्त्र आदिसे प्रकट होता है, वह गुरु कहलाता है; परन्तु मूलमें भगवान्‌ ही सबके गुरु हैं । भगवान्ने गीतामें कहा है कि ‘मैं ही सब प्रकारसे देवताओं और महर्षियोंका आदि अर्थात् उनका उत्पादक, संरक्षक, शिक्षक हूँ‒‘अहमादिर्हि देवानां महर्षीणां च सर्वशः’ (१० । २) । अर्जुनने भी विराट्रूप भगवान्की स्तुति करते हुए कहा है कि ‘भगवन् ! आप ही सबके गुरु हैं’‒‘गरीयसे’ (११ । ३७), ‘गुरुर्गरीयान्’ (११ । ४३) । अतः साधकको गुरुकी खोज करनेकी आवश्यकता नहीं है । उसे तो ‘कृष्ण वन्दे जगद्गुरुम्’ के अनुसार भगवान् श्रीकृष्णको ही गुरु और उनकी वाणी गीताको उनका मन्त्र, उपदेश मानकर उनके आज्ञानुसार साधनमें लग जाना चाहिये । यदि साधकको लौकिक दृष्टिसे गुरुकी आवश्यकता पड़ेगी तो वे जगद्गुरु अपने-आप गुरुसे मिला देंगे; क्योंकि वे भक्तोंका योगक्षेम वहन करनेवाले हैं‒‘योगक्षेमं वहाम्यहम्’ (९ । २२)

ज्ञातव्य

असली गुरु वह होता है, जो दूसरेको अपना शिष्य नहीं बनाता, प्रत्युत गुरु ही बनाता है अर्थात् तत्त्वज्ञ जीवन्मुक्त बना देता है, दुनियाका उद्धार करनेवाला बना देता है । ऐसा गुरु गुरुओंकी टकसाल, खान होता है ।

वास्तवमें जो महापुरुष (गुरु) होते हैं, वे शिष्य नहीं बनाते । उनके भीतर यह भाव कभी रहता ही नहीं कि कोई हमारा शिष्य बने तो हम बात बतायें । हाँ, उस महापुरुषसे जिनको ज्ञान मिला है वे उसको अपना गुरु मान लेते हैं । कोई माने, चाहे न माने, जिससे जितना ज्ञान मिला है, उस विषयमें वह गुरु हो ही गया । जिनसे हमें शिक्षा मिलती है, लाभ होता है, जीवनका सही रास्ता मिलता है, ऐसे माता-पिता, शिक्षक, आचार्य आदि भी ‘गुरु’ शब्दके अन्तर्गत आ जाते हैं ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘सच्चा गुरु कौन ?’ पुस्तकसे