।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
मार्गशीर्ष कृष्ण दशमी, वि.सं.२०७२, रविवार
एकादशी-व्रत कल है
राग-द्वेषसे रहित स्वरूप


एक बातपर आप विशेष ध्यान दें और उसको ठीक तरहसे समझ लें । गरमी पड़े तो आपपर गरमीका असर पड़ता है और सरदी पड़े तो सरदीका असर पड़ता है । असर पड़नेपर भी क्या आप यह मानते हो कि मेरेमें गरमी है या मेरेमें सरदी है ? मेरेमें सरदी-गरमी नहीं है, प्रत्युत आगन्तुक सरदी-गरमीका असर पड़ता है । ऐसे ही आपपर राग-द्वेषका आगन्तुक असर पड़ता है; परन्तु आप कहते हो कि मेरेमें राग-द्वेष हैं ! यह बहुत बड़ी गलती है । भगवान् साफ कहते हैं‒

मात्रास्पर्शास्तु कौन्तेय   शीतोष्णसुखदुखदाः ।
आगमापायिनोऽनित्यास्तांस्तितिक्षस्व भारत ॥
                                                   (गीता २ । १४)

‘हे कुन्तीनन्दन ! इन्द्रियोंके जो विषय हैं, वे तो शीतअनुकूलता और उष्णप्रतिकूलताके द्वारा सुख और दुःख देनेवाले हैं । वे आने-जानेवाले और अनित्य हैं । हे भरतवंशोद्भव अर्जुन ! उनको तुम सहन करो ।’

इस श्लोकमें भी भगवान्ने ‘शीत’ और उष्णशब्द दिये हैं । शीतका भी असर पड़ता है और उष्णका भी असर पड़ता है, पर आपमें शीत और उष्णता नहीं है । ये आने-जानेवाले और अनित्य हैं, पर आप ज्यों-के-त्यों रहनेवाले और नित्य हो‘नित्यः सर्वगतः स्थाणुरचलोऽयं सनातनः’ (गीता २ । २४) । इस बातको आप गहरा उतरकर समझो । यह कोई तमाशा नहीं है । बहुत ही मार्मिक और तत्काल कल्याण करनेवाली सच्ची बात है ।

अगर आपमें राग है तो वह हरदम रहना चाहिये अर्थात् आप रहोगे तो राग रहेगा, आप नहीं रहोगे तो राग नहीं रहेगा । अगर आपमें द्वेष है तो आप रहोगे तो द्वेष रहेगा, आप नहीं रहोगे तो द्वेष नहीं रहेगा । आप तो रहते हो, पर राग-द्वेष रहते नहीं, आते-जाते हैं, तो फिर ये आपमें कहाँ हैं ?

श्रोता‘अद्वेष्टा सर्वभूतानाम्भी तो गीता बोल रही है महाराजजी !

स्वामीजीवह भी हो जायगा । अब विवाह हुआ तो छोरा-छोरी अभी कैसे हो जायँगे ? पहले विवाह हो गया’‒इस बातको मान तो लो, फिर छोरा-छोरी ही नहीं, पोता-पोती भी हो जायँगे ! इसमें तो समय भी लगेगा, पर इस बातको माननेसे समय नहीं लगेगा । केवल तमाशेकी तरह मान लेनेकी बात मैं नहीं कहता हूँ । मैं जो बात कहता हूँ, उसका आप अनुभव करो । राग-द्वेष हमारेमें हरदम रहते हैं, यह आपने कैसे, किस आधारपर माना ? बताओ । मैंने यह बताया कि शीत-उष्णका असर पड़ता है तो आपमें शीत-उष्ण रहते हैं क्या ?

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)

‒‘नित्ययोगकी प्राप्ति’ पुस्तकसे