।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
मार्गशीर्ष कृष्ण एकादशी, वि.सं.२०७२, सोमवार
उत्पन्ना एकादशी-व्रत (सबका)
राग-द्वेषसे रहित स्वरूप


(गत ब्लॉगसे आगेका)

श्रोतारहते तो नहीं हैं, लेकिन असर पड़ता है !

स्वामीजीठीक बात है कि असर पड़ता है, पर हमारेमें राग-द्वेष हैंयह बात आप छोड़ दो तो निहाल हो जाओगे ! बहुत लाभकी बात है । अगर चोर और डाकूको रहनेकी जगह मिल जाय तो क्या वे उसको छोड़ेंगे ? ऐसे ही हमारेमें राग-द्वेष हैं’‒ऐसा मानकर आप राग-द्वेषको रहनेकी जगह दे देते हो तो क्या वे आपको छोड़ेंगे ? केवल पोथीकी बात नहीं है, आप सबके अनुभवकी बात है । क्या राग-द्वेष आपके साथ हरदम रहते हैं ? बताओ ।

श्रोतानहीं रहते हैं ।

स्वामीजीतो फिर ये हमारेमें हैंयह आपने किस आधारपर माना ?

श्रोताहमारेमें नहीं हैं, आते-जाते हैं ।

स्वामीजीकृपा करके इतनी बात आप मान लो तो मैं निहाल हो जाऊँ ! इतनी बात आप स्वीकार कर लो कि ये आने-जानेवाले हैं । यही तो भगवान् कहते हैं‘आगमापायिनोऽनित्याः । ये अनित्य हैं और आप नित्य हैं‘नित्यः सर्वगतः’ । अगर ये आपमें हैं तो नित्य रहने चाहिये !

आप अनुकूलता-प्रतिकूलताको जितना अधिक महत्त्व दोगे, उतना ही उनका असर अधिक होगा । जितना कम महत्त्व दोगे, उतना ही असर कम होगा । महत्त्व नहीं दोगे तो असर नहीं होगा । उनके महत्त्वको तो आप छोड़ते नहीं और जो बात मैं कहता हूँ, उसको मानते नहीं !

श्रोताआप कहते हैं कि भगवत्प्राप्ति तत्काल हो सकती है लेकिन गीताने कहा है‘कामक्रोधवियुक्तानां यतीनां यतचेतसाम् ।

स्वामीजीअगर असली भूख लगे तो भोजनमें देरी नहीं लगती । प्यास अगर जोरसे लगे तो पानी पीनेमें देरी नहीं लगती । ऐसे ही भगवत्प्राप्तिकी असली भूख लगे तो उसमें देरी नहीं लगती । देरी आपकी भूखमें है भगवत्पाप्तिमें थोड़े ही है !

परमात्मतत्त्वकी प्राप्ति कठिन नहीं है । अनित्य चीजको छोड़नेमें कठिनता माननेसे ही परमात्माकी प्राप्तिको कठिन मान लिया है । वास्तवमें अनित्य चीजको छोड़ना कठिन नहीं है; क्योंकि वह तो अपने-आप ही छूट रही है । कठिनाई तो उसको रखनेमें ही है !

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)

‒‘नित्ययोगकी प्राप्ति’ पुस्तकसे