(गत ब्लॉगसे आगेका)
श्रोता‒रहते तो नहीं हैं, लेकिन असर पड़ता है !
स्वामीजी‒ठीक बात है कि असर पड़ता है, पर ‘हमारेमें राग-द्वेष हैं’ यह बात आप छोड़ दो तो निहाल हो जाओगे
! बहुत लाभकी बात है । अगर चोर और डाकूको रहनेकी जगह मिल जाय तो क्या
वे उसको छोड़ेंगे ? ऐसे ही ‘हमारेमें राग-द्वेष हैं’‒ऐसा मानकर
आप राग-द्वेषको रहनेकी जगह दे देते हो तो क्या वे आपको छोड़ेंगे
? केवल पोथीकी बात नहीं है, आप सबके अनुभवकी बात
है । क्या राग-द्वेष आपके साथ हरदम रहते हैं ? बताओ ।
श्रोता‒नहीं रहते हैं ।
स्वामीजी‒तो फिर ये हमारेमें हैं‒यह आपने किस आधारपर
माना ?
श्रोता‒हमारेमें नहीं हैं, आते-जाते हैं ।
स्वामीजी‒कृपा करके इतनी बात आप मान लो तो मैं
निहाल हो जाऊँ
! इतनी बात आप स्वीकार कर लो कि ये आने-जानेवाले
हैं । यही तो भगवान् कहते हैं‒‘आगमापायिनोऽनित्याः’ । ये अनित्य हैं और आप नित्य हैं‒‘नित्यः सर्वगतः’ । अगर ये आपमें हैं
तो नित्य रहने चाहिये !
आप अनुकूलता-प्रतिकूलताको
जितना अधिक महत्त्व दोगे, उतना ही उनका असर अधिक होगा । जितना
कम महत्त्व दोगे, उतना ही असर कम होगा । महत्त्व नहीं दोगे तो
असर नहीं होगा । उनके महत्त्वको तो आप छोड़ते नहीं और जो बात मैं कहता हूँ, उसको मानते नहीं !
श्रोता‒आप कहते हैं कि
भगवत्प्राप्ति तत्काल हो सकती है लेकिन गीताने कहा है‒‘कामक्रोधवियुक्तानां यतीनां यतचेतसाम्
।’
स्वामीजी‒अगर असली भूख लगे तो भोजनमें देरी नहीं
लगती । प्यास अगर जोरसे लगे तो पानी पीनेमें देरी नहीं लगती । ऐसे ही भगवत्प्राप्तिकी असली भूख लगे तो उसमें देरी नहीं लगती ।
देरी आपकी भूखमें है भगवत्पाप्तिमें थोड़े ही है !
परमात्मतत्त्वकी प्राप्ति कठिन नहीं
है । अनित्य चीजको छोड़नेमें कठिनता माननेसे ही परमात्माकी प्राप्तिको कठिन मान लिया
है । वास्तवमें अनित्य चीजको छोड़ना कठिन नहीं है; क्योंकि वह तो अपने-आप ही छूट रही है । कठिनाई तो उसको रखनेमें ही है !
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘नित्ययोगकी प्राप्ति’ पुस्तकसे
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