।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
पौष कृष्ण अमावस्या, वि.सं.२०७२, रविवार
अमावस्या

खण्डन-मण्डनसे हानि



किसीकी बातका खण्डन करनेसे आपसमें संघर्ष बढ़ता है । हम दूसरेके मतका खण्डन करेंगे तो वह हमारे मतका खण्डन करेगा, जिससे कलह ही बढ़ेगा । अतः हो सके तो दूसरेको शान्तिपूर्वक अपनी बातका, अपने सिद्धान्तका तात्पर्य बताओ और यदि वह सुनना नहीं चाहे तो चुप हो जाओ । अपनी हार भले ही मान लो, पर संघर्ष मत करो । सरदारशहरके ‘टीचर-ट्रेनिंग-कालेज’ की एक बात है । वहाँ एक सज्जनने कहा कि देशका जितना नुकसान हुआ है, वह सब ईश्वरवादसे, आस्तिकवादसे ही हुआ है । मैं चुप रहा तो उन्होंने कहा कि ‘बोलो !’ तो मैंने कहा कि ‘आपने अपना सिद्धान्त कह दिया । आपको मेरा सिद्धान्त मान्य नहीं है और मुझे भी आपका सिद्धान्त मान्य नहीं है । अब बोलनेकी जगह ही नहीं है और जरूरत भी नहीं है ।’ इस तरह हमारेपर कोई आक्रमण कर दे तो सह लो । सहनेसे, निर्विकार रहनेसे अपना मत, सिद्धान्त मजबूत होता है, संघर्षसे नहीं । निर्विकार रहनेमें जो शक्ति है, वह और किसी उपायमें नहीं है । आपसे अपने इष्टकी निन्दा न सही जाय तो वहाँसे उठकर चले जाओ; कान मूँद लो, सुनो मत । कारण कि ऐसे आदमियोंको भली बात भी बुरी लगती है । विभीषणने रावणको अच्छी सलाह दी, पर रावणने विभीषणको लात मारी ! अतः शान्त रहना बहुत अच्छा है । अपनेसे जो सहा नहीं जाता, यह अपनी कमजोरी है । यह तो ठाकुरजी लीला करते हैं आपको पक्का बनानेके लिये ! यदि सहा न जाता हो तो भगवान्से प्रार्थना करो कि ‘हे नाथ ! हम सह नहीं सकते । कृपा करो, सहनेकी शक्ति दो ।’

दूसरा हमारे मतका, हमारे इष्टका खण्डन करे तो यह हमारेको बुरा लगता है और हम अपने इष्टका मण्डन करने लगते हैं । परन्तु वास्तवमें अपने इष्टका मण्डन करनेसे, प्रचार करनेसे उसका प्रचार नहीं होगा । आप चुप रह जाओ । जैसे, काकभुशुण्डिजीने पूर्वजन्ममें लोमश ऋषिके पास जाकर कहा कि मेरेको रामजीका ध्यान बताओ, तो लोमश ऋषिने अच्छा पात्र समझकर उन्हें ज्ञानका उपदेश दिया । लोमशजीने बार-बार ज्ञानकी बात कही, पर काकभुशुण्डिजीने उस बातको स्वीकार नहीं किया और अपनी बात कही । इससे लोमशजीको गुस्सा आ गया और उन्होंने शाप दे दिया कि तू कौएकी तरह मेरी बातसे डरता है; जा, तू कौआ हो जा ! काकभुशुण्डिजी कौआ बन गये । कौआ बननेपर भी उनको न भय लगा, न दीनता आयी‒‘नहिं कछु भय न दीनता आई’ (मानस, उत्तर ११२ । ८) लोमशजीने जब ऐसी सहनशीलता देखी तो उन्होंने प्रेमपूर्वक उसे पासमें बुलाया, रामजीका मन्त्र और ध्यान बताया । इस विषयमें काकभुशुण्डिजीने कहा है‒

भगति पच्छ हठ करि रहेउँ दीन्हि महारिषि साप ।
मुनि  दुर्लभ  बर  पायउँ    देखहु   भजन   प्रताप ॥
                                          (मानस, उत्तर ११४ ख)

भजन क्या था ? सहनशीलता, शान्त रहना, इस भजनके प्रतापसे मुनिने वरदान दिया कि तुम्हारे रहनेके स्थानसे योजनभर तुम्हारे पास माया नहीं आयेगी । अतः शान्त रहनेमें बहुत बड़ी शक्ति है ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘सत्संगका प्रसाद’ पुस्तकसे