।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
पौष शुक्ल तृतीया, वि.सं.२०७२, मंगलवार

खण्डन-मण्डनसे हानि


(गत ब्लॉगसे आगेका)
आज जो एक-दूसरेको दबाकर अपनी उन्नति चाहते हैं कि इससे काम ठीक हो जायगा‒इसका नतीजा बड़ा भयंकर होगा । दबानेसे शक्ति दबती नहीं है । खण्डन करनेवाला भी परमात्माका अंश है, वह अपना तिरस्कार कैसे सहेगा ? सह नहीं सकेगा, उलटे वह हमारे इष्टका, हमारे मतका और जोरसे खण्डन करेगा । उस जोरदार खण्डनमें हम ही निमित्त होते हैं । मैंने कई बार व्याख्यानमें कहा है कि अपने मतके मण्डनमें यदि हम दूसरेके मतका खण्डन करते हैं तो वास्तवमें हम दूसरेको अपने मतके खण्डनका निमन्त्रण देते हैं कि तुम भी हमारे मतका खण्डन करो ! अतः इससे कोई फायदा नहीं होगा, प्रत्युत दोनोंका नुकसान होगा ।

हमारा अपने मतमें सद्भाव तो कम है, पर जिद ज्यादा है, इसीलिये हम दूसरेके मतका खण्डन करते हैं । अपने मतके अनुसार चलनेसे तो कल्याण होता है, पर अपने मतका पक्ष लेनेसे कल्याण नहीं होता । पक्ष लेनेमें ‘हमारे इष्टका मण्डन कैसे हो’‒इस तरफ ही वृत्ति रहती है, ‘हमारा इष्ट क्या कहता है’‒इस तरफ ध्यान ही नहीं जाता । अतः दूसरेके मतका खण्डन करनेमें लग जायेंगे तो हमारेमें अपने मतका पक्षपात तो रहेगा, पर हम अपने मतके अनुयायी नहीं बन सकेंगे । हम केवल अपने मतके मण्डनमें ही तत्पर हो जायगे तो हम उसके अनुयायी बनकर अपना कल्याण नहीं कर सकेंगे ।

आज दशा क्या हो रही है ? सबमें अपने मतका मण्डन और दूसरेके मतका खण्डन करनेकी ही धुन है, परन्तु यह  काम साधकका नहीं है । साधकका काम तो अपना कल्याण  करना है । हम जिस मतका प्रचार चाहते हैं, उस मतके  अनुसार अपना जीवन बनाना चाहिये ।

यद्यदाचरति  श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जनः ।
स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते ॥
                                      (गीता ३ । २१)

‘श्रेष्ठ मनुष्य जो-जो आचरण करता है, दूसरे मनुष्य  वैसा-वैसा ही आचरण करते हैं । वह जो कुछ प्रमाण देता है, दूसरे मनुष्य उसीके अनुसार आचरण करते हैं ।’

‒इस श्लोकपर आप विचार करें । इसके पूर्वार्धमें यत्, यत्, तत्, तत् और एव‒ये पाँच शब्द आये हैं और उत्तरार्धमें यत् और तत्‒ये दो ही शब्द आये हैं । इसका  तात्पर्य है कि जहाँ जबानसे कहनेसे दो गुना असर पड़ता   है, वहाँ आचरण करनेसे पाँच गुना असर पड़ता है । अतः  आचरण दामी है, प्रचार दामी नहीं है । वास्तवमें देखा जाय तो प्रचार उसीके द्वारा होता है, जिसका आचरण वैसा ही होता है । उसकी वाणीमें वजन होता है । जैसे, एक बन्दूकमें गोली होती है और एक बन्दूकमें केवल बारूद होता है । आवाज तो बारूद भी कर देगा, पर चोट गोली ही करेगी । ऐसे ही अपना जो आचरण है, वह गोलीके समान है, जिसका दूसरोंपर असर पड़ता है ।
 
   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘सत्संगका प्रसाद’ पुस्तकसे