।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
पौष शुक्ल पंचमी, वि.सं.२०७२, गुरुवार

कृष्णं वन्दे जगदगुरुम्



जो मोहरहित होता है, वही बालकका भला कर सकता है । मोहवाला भला नहीं कर सकता । वैद्य और डॉक्टर दुनियाका इलाज करते हैं, पर अपनी स्त्री या बालक बीमार हो जाय तो दूसरे वैद्यको बुलाते हैं । आप विचार करें कि ऐसा क्यों होता है ? खुद अच्छे डॉक्टर होनेपर भी मोह होनेके कारण अपनी स्त्री या बालकका इलाज नहीं कर सकते । उनका इलाज  वही कर सकेगा, जिसमें मोह नहीं है । अतः मोहरहित, पक्षपातरहित, सन्तोंके द्वारा जितनी अच्छी शिक्षा मिलती है, उतनी औरोंके द्वारा नहीं मिलती । परन्तु बड़े दुःखकी बात है कि आजकलके गुरु कहते हैं कि तुम मेरे चेले बन जाओ तो तुमको बढ़िया बात बतायेंगे ! चेला बननेपर मोह हो जायगा, ममता हो जायगी । मोह होनेसे दोनोंका पतन होगा‒

गुरु लोभी शिष्य लालची, दोनों खेले दाँव ।
 दोनों डूबा ‘परसराम’,   बैठ  पथरकी नाँव ॥

          चेला सोचता है कि गुरुजीको एक रुपया भेंट कर देंगे तो हमारा पुण्य हो जायगा, बाबाजी हमारे सब पाप ले लेंगे । उधर बाबाजी सोचते हैं कि एक रुपया मुफ्तमें मिलता है, चेलेको एक कण्ठी दे दो । एक रुपयामें पाँच-सात कण्ठी आती है, अपना तो फायदा ही है । अब वह कण्ठी बाँध लेनेसे कल्याण हो जायगा ? लोग कहते हैं कि गुरु बनानेसे कल्याण होता है । गुरु नहीं है तो गुरु बना लो, भाई नहीं है तो धर्मभाई बना लो, बहन नहीं है तो धर्मबहन बना लो । किसी तरह पतन हो जाय‒यह उद्योग हो रहा है । गुरु बननेसे क्या होता है ? वे कहते हैं कि हमारे गुरुजी बड़े हैं और वे कहते हैं कि हमारे गुरुजी बड़े हैं, अब गोधा (साँड़) लड़ाओ । बीकानेरमें अपने-अपने मोहल्लेमें एक गोधा तैयार करते हैं, फिर दोनोंको लड़ाते हैं और तमाशा देखते हैं कि दोनोंमें तेज कौन है ? अब कल्याण कैसे हो जायगा ? विचार ही नहीं करते । कहते हैं कि गुरुके बिना कल्याण नहीं होता, तो जिन्होंने गुरु बना लिया, उनका कल्याण हो गया क्या ? वे निहाल हो गये क्या ? कुछ तो अक्ल होनी चाहिये, कुछ तो विचार करना चाहिये । यह नहीं सोचते कि जो गुरु बने हुए हैं, उनकी दुर्दशा क्या है ! गुरु बनानेके एजेंट होते हैं । वे दूसरोंको कहते हैं कि तुम हमारे गुरुजीको अपना गुरु बनाओ । कैसी उलटी रीति है । क्या पतिव्रता स्त्री दूसरी स्त्रियोंसे कहती हैं कि ‘मैं पतिको ईश्वर मानती हूँ, तुम भी मेरे पतिको ईश्वर मानो, उनकी सेवा करो ?’ तुम भी मेरे गुरुजीके चेले बन जाओ, हमारी टोलीमें आ जाओ, तो क्या दूसरोंके कल्याणका ठेका ले रखा है ?

   (शेष आगेके ब्लॉगमें) 
‒‘सच्चा गुरु कौन ?’ पुस्तकसे