।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
पौष शुक्ल षष्ठी, वि.सं.२०७२, शुक्रवार
मकरसंक्रान्ति प्रातः ७ / ३४,
पुण्यकाल प्रातः ७ / ३४ बजेसे सूर्यास्ततक,
कृष्णं वन्दे जगदगुरुम्



(गत ब्लॉगसे आगेका)
एक कहानी याद आ गयी । एक संत थे, वे भिक्षाके लिये गये तो उन्होंने देखा कि एक जगह कई वेश्याएँ इकट्ठी हो रही हैं । बाबाजीने पूछा कि क्या बात है ? तो बताया कि एक वेश्याने सभी वेश्याओंको भोज दिया है । हलवा, चना, चावलये चीजें बनायी हैं । जो चावल बनाये थे, उसका माँड़ एक जगहसे बह रहा था । बाबाजी उससे हाथ धोने लगे । वेश्या ऊपर बैठी थी । उसने देखा तो बोली कि ‘बाबाजी ! यह क्या कर रहे हो ?’ बाबाजी बोले कि ‘करना क्या है, हाथ धोता हूँ ।’ वेश्या बोली‘महाराज ! अन्नके पानीसे हाथ धोओगे तो हाथ चिपकेंगे, पानीसे हाथ धोओ ।’ बाबाजी बोले‘यह पानी नहीं है तो क्या है बता ? तेरेको दीखता नहीं है ?’ वेश्याने कहा कि ‘बाबाजी ! यह पानी शुद्ध नहीं है । शुद्ध पानीसे हाथ धुलते हैं ।’ वेश्या पासमें आ गयी थी । बाबाजी बोले‘तो फिर तू वेश्याओंको भोजन करा रही है, वे क्या ज्यादा शुद्ध हैं ? क्या वेश्या-भोज करनेसे कल्याण हो जायगा ?’ वेश्या बोली‒‘महाराज ! मैंने सुना कि दान-पुण्य करनेसे, भोजन करानेसे बड़ा पुण्य होता है, तो मैं साधुओंके पास गयी और उनसे पूछा कि ‘महाराज ! कल्याण कैसे होगा ?’ तो उन्होंने कहा कि ‘साधु-संतोंकी सेवा करो, तब कल्याण होगा ।’ फिर मैं ब्राह्मणोंके पास गयी और उनसे पूछा कि ‘कल्याण कैसे होगा ?’ तो उन्होंने कहा कि ‘जो जन्मसे ब्राह्मण हैं, उनकी सेवा करो, तब कल्याण होगा ।’ अब मैं वैष्णवोंके पास गयी तो उन्होंने कहा कि ‘वैष्णवोंकी सेवा करो ।’ शैवोंके पास गयी तो वे बोले कि ‘शैवोंकी सेवा करो ।’ इस प्रकार जहाँ-जहाँ गयी, वहाँ-वहाँ सबने अपनी ही महिमा गायी, तो यह देखकर हमें युक्ति मिल गयी, विद्या मिल गयी कि हम वेश्याओंको ही भोजन करायें तो इसीसे कल्याण हो जायगा । ऐसे ही बतानेवाले और ऐसे ही शिक्षा लेनेवाले । हल्ला मचा दिया कि गुरु बनाओ, तब कल्याण होगा । विचार करो कि जिन्होंने गुरु बनाया, उनमें क्या फर्क पड़ा ? जैसे पहले थे, वैसे अब भी हैं । बनावटी गुरुसे काम नहीं चलेगा । आप गुरु बनायेंगे तो बनाया हुआ गुरु क्या कल्याण करेगा ?

वास्तवमें गुरु बनाया नहीं जाता । गुरु तो हो जाता है । जिससे हमें किसी विषयका ज्ञान हुआ तो उस विषयमें वह हमारा गुरु हो गया, चाहे हम उसे गुरु मानें या न मानें, जानें या न जानें । एक संतसे किसीने पूछा कि ‘आपका गुरु कौन है ?’ तो उन्होंने कहा कि ‘जो मेरेसे ज्यादा जानता है’ और ‘चेला कौन है ?’ ‘जो मेरेसे कम जानता है ।’ कितनी बढ़िया बात बतायी । जो मेरेसे ज्यादा जानता है, वह मेरा गुरु है, चाहे मैं मानूँ या न मानूँ । जो मेरेसे कम जानता है, वह मेरा चेला है, चाहे वह चेला बने या न बने ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें) 
‒‘सच्चा गुरु कौन ?’ पुस्तकसे