।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
पौष शुक्ल सप्तमी, वि.सं.२०७२, शनिवार
कृष्णं वन्दे जगदगुरुम्



(गत ब्लॉगसे आगेका)
मैं आपसे एक प्रश्न करता हूँपहले बेटा पैदा होता है कि बाप ?

श्रोताबाप !

स्वामीजीनहीं, पहले बेटा पैदा होता है, पीछे बाप पैदा होता है । बेटा पैदा हुए बिना उसका ‘बाप’ नाम होता ही नहीं । जिससे बेटा पैदा हो जाय, वह बाप हो गया और जिससे आपको ज्ञान हो जाय, वह गुरु हो गया, भले ही आप उसको गुरु मत बनाओ । जिससे आपको गुर मिल गया, सिद्धान्त मिल गया और जिसकी शिक्षासे आपकी उन्नति हो गयी, वह आपका गुरु हो गया, चाहे उसको पता हो या न हो । वह बनावटी गुरु नहीं है, असली गुरु है । बनावटी गुरुसे कभी कल्याण नहीं होता । कालनेमिने हनुमान्जीसे कहा कि ‘मैं गुरु हूँ, स्नान करके आओ, मैं तुम्हें दीक्षा दूँगा ।’ हनुमान्जी स्नान करनेके लिये गये । वहाँ मकरीने कहा कि ‘महाराज ! इसको सन्त मत मानना, यह तो राक्षस है ।’ हनुमान्जीने आकर कहा कि ‘पहले गुरु-दक्षिणा ( भेंट) ले लो, पीछे मेरेको मन्त्र देना’ और उसको पूँछमें लपेटकर ऐसा पछाड़ा कि वह प्राणमुक्त हो गया ! कपटी, बनावटी गुरुकी ऐसी पूजा होती है । जैसा देव, वैसी पूजा ।

थोड़ा विचार करें, जिसके मनमें चेला बनानेकी इच्छा है, वह गुरु कैसे हुआ ! वह तो चेलादास है । जिसको चेलेकी गरज है, वह चेलेका गुलाम हुआ । जिसको रुपयोंकी गरज है, वह रुपयोंका गुलाम हुआ । अगर रुपये देनेसे कोई गुरु बनता है, तो वह हुआ रुपयोंका दास और वे रुपये हमारे पास हैं, तो हम हुए उसके दादागुरु ! अब वह हमारा कल्याण कैसे करेगा ? परंतु लोग सोचते ही नहीं और कह देते हैं कि अरे ! रुपये इनके भेंट कर दो और इनके चेले बन जाओ, ये हमारा कल्याण कर देंगे । माताओंसे कहते हैं कि ‘तुम ऐसे-ऐसे कर दो, नहीं तो चिड़िया बनाकर उड़ा देंगे तुम्हारेको !’ जब महाराज ! चिड़िया बनाकर उड़ा दोगे, तभी हम आपको मानेंगे, नहीं तो आपको कुछ न देंगे । हमारा तो फायदा ही है, चलना-फिरना नहीं पड़ेगा, उड़कर चले जायेंगे ! वे आशीर्वाद देते हैं‘तेरे दूध-पूतकी खैरतेरा दूध (जाति) भी ठीक रहे, तेरा पूत भी जीता रहे, तो महाराज ! आशीर्वाद आप अपने पास ही रखो । वे कहते हैं कि इतनी भेंट लाओ, इतना रुपया लाओ तो तुम्हारा कल्याण कर देंगे, ऐसी विद्या बता देंगे, जिससे लोहेका सोना बन जाय । बाबाजी ! ऐसी विद्या यदि तुम्हारे पास है तो हमारेसे रुपया क्यों माँगते हो ? रुपयेकी चाहना क्यों रखते हो ? वे कहते हैं कि हमारे पास रुपये कम हैं, इसलिये माँगते हैं । महाराज ! अगर हमारे पास रुपये ज्यादा हैं तो हम तुम्हारेसे बड़े हुए फिर तुम्हारे गुलाम हम क्यों बनेंगे ? जो रुपयोंसे खरीदे जायँ, वे गुरु नहीं होते ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘सच्चा गुरु कौन ?’ पुस्तकसे