।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
पौष शुक्ल अष्टमी, वि.सं.२०७२, रविवार
कृष्णं वन्दे जगदगुरुम्



(गत ब्लॉगसे आगेका)
वास्तवमें गुरुको चेलेकी गरज नहीं होती, चेलेको ही गुरुकी गरज होती है । भाइयोंको वहम पड़ा हुआ है कि गुरु बनानेसे कल्याण हो जायगा । बनावटी गुरु कल्याण नहीं करता । मैं तो कहता हूँ कि भगवान्‌ श्रीकृष्णको गुरु मान लो‒ ‘कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम् ।’ भगवान्‌ जगत्‌के गुरु हैं और जगत्‌में आप हो ही । उनका मन्त्र है‒ ‘भगवद्गीता ।’ भगवद्गीताका मनन करो, कल्याण हो जायगा । सन्देह हो तो करके देख लो कि कल्याण होता है या नहीं होता । भगवान्‌के रहते हुए आप गुरुके लिये क्यों भटकते हो ?

माताएँ डरती हैं कि हम किन-किनका उपदेश मानें ! हम हनुमान्जीकी पूजा करें तो कृष्ण नाराज हो जायँगे, कृष्णकी पूजा करें तो रामजी नाराज हो जायँगे, रामजी आदिको मानें तो देवी नाराज हो जायँगी, देवीकी पूजा करें तो हनुमान्जी नाराज हो जायँगे ! अब हम क्या करें ? ऐसे प्रश्र मेरे पास आते हैं । कितनी भोली-भाली, सीधी-सादी माताएँ हैं ! कोई ठग मिल जाय तो इन बेचारियोंको डुबा दे ! मैंने कहा कि तुम यह डर बिलकुल निकाल दो । अब पतिव्रता कहे कि मैं पतिकी सेवा करूँगी तो दूसरे पुरुष नाराज हो जायँगे, तो बड़ी मुश्किल हो जायगी । सबकी सेवा कहाँतक होगी ! तुम किसी एकके भक्त बन जाओ । तो सब राजी हो जायँगे । तुम कृष्णभगवान्के भक्त बन जाओ तो देवी, सूर्य, गणेश, शिव आदि सब राजी हो जायँगे । पतिव्रतासे कौन नाराज होता है ? तुम पतिकी सेवा करती हो, हमारी सेवा तो करती ही नहीं, हम नाराज हो जायँगेऐसा होता है क्या ? पतिव्रतासे कोई नाराज नहीं होता । अगर नाराज हो भी जाय तो हमारी तरफसे भले ही सब नाराज हो जायँ । एक बार मेरेको एक भाईने कहा कि महाराज ! आप मेरेसे नाराज हो गये क्या ? मैंने कहा कि अगर नाराज होनेसे भगवान् मिल जायँ, तो तेरेसे नाराज हो जायँ ! भगवान् तो मिलते नहीं नाराज होनेसे, तो फिर हम नाराज क्यों होंगे ! नाराज होनेसे मेरेको क्या लाभ होगा ? बेचारे भाई डर जाते हैं कि एक देवताकी पूजा करनेसे दूसरे देवता नाराज हो जायँगे । बिलकुल नाराज नहीं होंगे । आप अनन्यभावसे किसी एक देवताकी उपासनामें तत्परतासे लग जाओ तो दूसरे सब देवता राजी हो जायँगे ।

श्रोता‒आजकल दुनियामें ढूँढ़नेपर भी गुरु नहीं मिलता । मिलता है तो ठग मिलता है । हम गुरु ढूँढ़नेके लिये कई तीर्थोंमें गये, पर कोई मिला ही नहीं । आप कहते हैं कि जगद्गुरु कृष्णको अपना गुरु मान लो । अगर आप यह घोषणा कर दें कि भाई ! आपलोग कृष्णको ही गुरु मानो तो यह वहम ही मिट जाय ........!

स्वामीजीवास्तवमें गुरुको ढूँढ़ना नहीं पड़ता । फल पककर तैयार होता है तो तोता खुद उसको ढूँढ़ लेता है । ऐसे ही अच्छे गुरु खुद चेलेको ढूँढ़ते हैं, चेलेको ढूँढ़ना नहीं पड़ता । जैसे ही आप कल्याणके लिये तैयार हुए, गुरु फट आ टपकेगा ! फल पककर तैयार होता है तो तोता अपने-आप उसके पास आता है, फल तोतेको नहीं बुलाता । ऐसे ही आप तैयार हो जाओ कि अब मुझे अपना कल्याण करना है तो गुरु अपने-आप आयेगा ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘सच्चा गुरु कौन ?’ पुस्तकसे