मनुष्यमें जाननेकी एक इच्छा रहती है कि मैं अधिक सत्संग करूँ, अधिक पढूँ और अधिक जानूँ । बहुत अच्छी बात है ! परन्तु बढ़िया बात
यह है कि जितना जानते हैं, उतना काममें
लाओ । मैं अधिक पैसे पैदा कर लूँ‒यह इच्छा रहती है,
पर जो है, उसका उपयोग करो । आपके पास जो पैसा है, उसका उपयोग करनेकी जितनी जरूरत है, उतनी और पैदा करनेकी
जरूरत नहीं है । आप पैसोंका सदुपयोग करोगे तो आपके पास पैसोंकी कमी नहीं रहेगी । आप
वस्तुओंका ठीक तरहसे सदुपयोग करोगे तो वस्तुओंकी कमी नहीं रहेगी । परन्तु
उनका दुरुपयोग करोगे तो लाखों-करोड़ों रुपये होनेपर भी आपकी तृष्णा नहीं
मिटेगी, कृपणता नहीं मिटेगी और पतन होगा । एकदम पक्की बात है
! इसलिये आजतक जितना आप जानते हो,
उसके अनुसार अगर जीवन बना लो तो उद्धार हो जायगा, इसमें सन्देह नहीं है । अगर आप सुनते जाओ,
पढ़ते जाओ, जानते जाओ, पर
उसके अनुसार करो नहीं तो आपके चाहे कई जन्म बीत जायँ, उद्धार नहीं होगा ।
ज्ञानके संचयकी इतनी आवश्यकता नहीं है, जितनी उसके सदुपयोगकी आवश्यकता है । पैसोंके, वस्तुओंके संचयकी महिमा नहीं है, प्रत्युत उनके सदुपयोगकी
महिमा है । आपको जितना मिला है, उतनेसे पूरा उद्धार हो सकता है
। भगवान्ने मनुष्यजन्म दिया है तो उद्धारकी सामग्री भी पूरी
दी है । वास्तवमें देखा जाय तो सामग्री बहुत ज्यादा दी है ! उद्धारके
लिये जितनी योग्यता चाहिये, उससे अधिक योग्यता दी है । उद्धारके
लिये जितना समय चाहिये, उससे अधिक समय दिया है । उद्धारके लिये
जितनी समझ चाहिये, उससे अधिक समझ दी है । कृपणता, कंजूसी नहीं की है भगवान्ने । इसलिये आपके पास जितनी सामग्री है, जितना समय है, जितनी समझ
है, जितनी सामर्थ्य है, उसको पूरी लगा दो
तो परमात्माकी प्राप्ति हो जायगी‒इसमें किञ्चिन्मात्र भी सन्देह नहीं है । जितनी सामग्री, जितना धन आपके पासमें है, उसका आप सदुपयोग करो तो कल्याण हो जायगा । उसका सदुपयोग
न करके संचय करोगे तो इस जन्ममें तो कल्याण होगा नहीं, आगेके जन्ममें भी शायद ही हो ! जितना धन आपके पास है, उससे ज्यादाकी जरूरत नहीं है ।
इन्कमपर टैक्स होता है, मालपर जगात होती है । जितनी इन्कम है,
उतना टैक्स होगा । जितना माल है, उतनी जगात होगी
। अतः अधिक धनकी इच्छा करनी आफत करनी है, अधिक समयकी इच्छा करनी आफत करनी है, अधिक सामग्रीकी इच्छा करनी आफत करनी है ।
(शेष आगेके
ब्लॉगमें)
‒‘नित्ययोगकी प्राप्ति’ पुस्तकसे
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