।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
पौष शुक्ल एकादशी, वि.सं.२०७२, बुधवार
पुत्रदा एकादशी-व्रत(सबका)

प्राप्त जानकारीके सदुपयोगसे कल्याण



(गत ब्लॉगसे आगेका)
समझ (ज्ञान) में एक विलक्षण बात है कि जितनी समझ है, उसका सदुपयोग करोगे तो वह समझ अपने-आप विलक्षण हो जायगी; बिना पढ़े-लिखे, बिना गुरुके स्वतः बढ़ जायगी ! परन्तु कोरा पोथा पढ़कर पण्डित बन जाओ तो वाह-वाह हो जायगी, पर हाथ कुछ नहीं आयेगा, प्रत्युत एक अभिमान नया पैदा हो जायगा । एक माईके घरमें बिल्ली मर गयी । उसने सुबह देखा कि आँगनमें बिल्ली मरी पड़ी है तो उसको बड़ी ग्लानि हुई । अब उसको बाहर कैसे निकाले ? वह किसी मेहतरको बुलाने बाहर चली गयी कि कोई आ जाय और इसको बाहर निकाल दे । इतनेमें एक ऊँट आया । वह बीमार था । घरका दरवाजा छोटा था । ऊँट दरवाजेके भीतर घुसने लगा तो घुसते ही गिर गया और गिरते ही मर गया । अब बिल्ली तो निकली नहीं, ऊँट और मर गया ! बिल्लीको तो कोई लकड़ीसे उठाकर फेंक दे, पर ऊँटको कैसे फेंके ? ऐसे ही पहले हमें ज्ञान नहीं था तो बिल्ली मरी हुई थी, अब पढ़-लिखकर अभिमान आ गया तो ऊँट मर गया ! अब ऊँटको कैसे निकालें ? मैं पढ़ा-लिखा हूँ, मैं साधु हूँ, मैं त्यागी हूँ, तुम मेरेको जानते हो कि नहीं ? मैं तो कई दिन तुम्हारेको पढ़ा दूँयह ऊँट मरा हुआ है । इसको निकालना बड़ा मुश्किल है ! कोरी फूँक भरी हुई है, भीतरमें है कुछ नहीं ! भीतरमें कोरा घाटा है । इस प्रकार अज्ञानके कारण जो अभिमान आता है, उस अभिमानको दूर करना बड़ा कठिन है ! इसलिये कृपानाथ ! पहलेसे ही कृपा करो कि आपके पास जितना ज्ञान है, उसके अनुसार जीवन बनाओ । कहते हैं कि गुरुके बिना ज्ञान नहीं होता तो जिन लोगोंने गुरु बनाया है, उनको ज्ञान हो गया क्या ? उनका उद्धार हो गया क्या ? नहीं हुआ तो फिर आपका कैसे हो जायगा ? होनेवाला कुछ नहीं है । केवल टोली बन जायगी । परन्तु जितना जानते हो, उसको काममें लाओ तो निहाल हो ही जाओगे, इसमें सन्देह नहीं है ।

भगवान्ने मनुष्य-शरीर कल्याणके लिये दिया है तो क्या सामग्रीकी कंजूसी की है ? समझकी कंजूसी की है ? समयकी कंजूसी की है ? एक जीवनमें कई बार कल्याण हो जाय, इतना समय दिया है, इतनी सामर्थ्य दी है, इतनी समझ दी है, इतनी योग्यता दी है । अधिक योग्यताकी जरूरत नहीं है । आप भी अपने बालकसे उतनी ही आशा रखते हैं, जितना वह कर यकता है । जो वह नहीं कर सकता, उसकी आशा आप नहीं रखते । छोटे बच्चेसे यह आशा नहीं रखते कि वह ढाई मणका बोरा उठा लाये । क्या भगवान् आप जितने भी ईमानदार नहीं हैं कि जो हम न कर सकें, उसकी आशा हमारेसे रखें ? जितना हम कर सकें, उतनेकी ही जरूरत है; ज्यादाकी जरूरत है ही नहीं । जितना हम जान सकें, समझ सकें, उतनेकी ही जरूरत है; ज्यादाकी जरूरत ही नहीं है । कल्याणके लिये सामग्री बहुत है, समय बहुत है । आप उसका सदुपयोग शुरू कर दें तो बिना पढ़े-लिखे पारमार्थिक बातोंका ज्ञान हो जायगा । आपके भीतर स्वतः विवेक प्रकाशित हो जायगा । कितनी सुगम बात है ! आप स्वतन्त्रतासे अपना कल्याण कर सकते हैं । अपने-आपके गुरु आप ही बन जाओ । आप ही अपने नेता बन जाओ । आप खुद ही अपने मालिक बन जाओ । पूर्णता हो जायगी, इसमें सन्देह नहीं है ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें) 
‒‘नित्ययोगकी प्राप्ति’ पुस्तकसे