।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
पौष शुक्ल द्वादशी, वि.सं.२०७२, गुरुवार
प्राप्त जानकारीके सदुपयोगसे कल्याण



(गत ब्लॉगसे आगेका)
जो महान् उदार है, महान् सुहृद् है, महान् दयालु है और जिसमें अनन्त-अपार ज्ञान है, उस परमात्माके रहते हुए हम दुःख क्यों पायें ? क्या कमी है उसके पास ? माँके पास सब सामग्री हो और बच्चा भूखा मरेयह हो ही नहीं सकता । बच्चेको जितनी आवश्यकता है, उससे ज्यादा आवश्यकता माँको है । ऐसे देखनेमें तो बालकके लिये माँकी आवश्यकता है, पर माँ अपने लिये बालककी जितनी आवश्यकता मानती है, उतना बालक अपने लिये माँकी आवश्यकता नहीं मानता । ऐसे ही हम अपने उद्धारका जितना विचार करते हैं, उससे भगवान् कम विचार नहीं करते । अतः आपको जितना मिला है, उसका सदुपयोग करो तो जो विलक्षणता पढ़े-लिखोंमें नहीं है उद्धार करनेकी जो सामर्थ्य और समझ अच्छे-अच्छे पण्डितोंके पास नहीं है, वह आपके पास हो जायगी !

कोरी पुस्तक पढ़कर कोई पण्डित नहीं होता । जो जितना ज्यादा धनवान् है, जितना ज्यादा पढ़ा-लिखा है, उतनी ही उसको ज्यादा आफत है । अपनी योग्यतासे परमात्मा नहीं मिलते । योग्यतासे संसारमें नाम होता है, संसारकी वस्तु मिलती है । भगवान्के यहाँ योग्यताकी कमी नहीं है । आपकी योग्यता वहाँ काम करेगी, जहाँ योग्यताकी कमी है । जहाँ आपसे ज्यादा योग्यता है, वहाँ आपकी योग्यता कुछ काम नहीं करेगी । गाँवमें लखपतिकी बड़ी इज्जत होती है । परन्तु जहाँ सभी करोड़पति हों, वहाँ लखपतिकी क्या इज्जत है ? ऐसे ही परमात्माके यहाँ समझकी कमी नहीं है; अतः वहाँ आपकी समझकी कोई जरूरत नहीं है । आपके पास अपने उद्धारके लिये काफी सामग्री है । केवल सरलतासे और विवेकपूर्वक उसका सदुपयोग करना है । उसका सदुपयोग कैसे करेंइसकी शिक्षा सत्संगसे, सद्विचारसे, प्राप्त विवेकका आदर करनेसे मिलती है । सदुपयोग करनेसे उद्धार हो जाता हैइसमें किंचिन्मात्र भी सन्देह नहीं है । जो बिलकुल गाँवमें रहनेवाले हैं, पढ़े-लिखे नहीं हैं, उनको परमात्मतत्त्वका बोध हो गया और बड़े-बड़े पण्डित रीते रह गये !

समय निरर्थक जाता है, समझ निरर्थक जाती है, सामर्थ्य निरर्थक जाती है, इसीलिये परमात्माकी प्राप्ति नहीं हो रही है । इनका सदुपयोग करो । समझते हैं कि सच बोलना ठीक है, फिर भी झूठ बोलते हैं; न्याय करना ठीक है, फिर भी अन्याय करते हैं; किसीको दुःख देना ठीक नहीं है, फिर भी दुःख देते हैंयह अपने ज्ञानका निरादर है । अपने ज्ञानका निरादर न करें, दुरुपयोग न करें तो उतने ज्ञानसे आपकी मुक्ति हो जायगी, इसमें सन्देह नहीं है । जितना मिला है, उसका सदुपयोग ठीक करें तो पूर्णता हो जायगी ।

नारायण !     नारायण !!     नारायण !!!

‒‘नित्ययोगकी प्राप्ति’ पुस्तकसे