।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
पौष कृष्ण नवमी, वि.सं.२०७२, रविवार
स्वाधीनताका रहस्य




(गत ब्लॉगसे आगेका)
सांसारिक योग्यता आदि तो सीमित होती है, पर त्याग सीमित नहीं होता । त्याग असीम होता है, जिससे असीम परमात्माकी प्राप्ति होती है । अतः सांसारिक चीजोंका जो सहारा है, अन्तःकरणमें उनका जो महत्त्व है, उसका त्याग करना है । स्वरूपसे संसारका त्याग कोई कर सकता नहीं और करनेसे मुक्ति होती नहीं । अगर मुक्ति होती तो सब मरनेवालोंकी मुक्ति होनी चाहिये; क्योंकि वे शरीर, धन, परिवार आदिको छोड़कर जाते हैं और पीछे कोई तार, चिट्ठी, समाचारतक नहीं भेजते‒इतना त्याग करते हैं ! परन्तु ऐसे बाहरी त्यागसे मुक्ति नहीं होती । त्याग भीतरका होना चाहिये । भीतरमें जो राग, आसक्ति, प्रियता, महत्ता है, वही बन्धनका कारण है‒‘कारणं गुणसंगोऽस्य सदसद्योनिजन्मसु’ (गीता १३ । २१) । जब भीतरसे सम्बन्ध-विच्छेद करना है, तो फिर वस्तु बढ़िया हो, घटिया हो; ज्यादा हो, कम हो‒इससे क्या फर्क पड़ेगा ?

श्रोता‒भगवान्‌ने यह संसार बनाया, तो फिर यह माया-जाल क्यों फैलाया ?

स्वामीजी‒देखो, यह जो कहते हैं कि भगवान्‌की मायाने हमें फँसा दिया, वास्तवमें देखा जाय तो भगवान्‌की मायाने हमें नहीं फँसाया है । भगवान्‌की मायाको हमने अपनी मान लिया‒इस बेईमानीने हमें फँसाया है ! जिन प्राणी-पदार्थोंको हम अपना मान लेते हैं, उनमें ही हम फँसते हैं । जिनको अपना नहीं मानते, उनमें हम नहीं फँसते ।

श्रोता‒आपने फरमाया कि भगवान् सबका कल्याण चाहते हैं ?

स्वामीजी‒चाहते तो हैं, पर जबर्दस्ती नहीं करते । जो बड़े पुरुष होते हैं, वे जबर्दस्ती नहीं करते । भगवान् तो बड़ोंके सरदार हैं, वे जबर्दस्ती कैसे करेंगे ?

जैसा मैं कहूँ, जैसा मैं चाहूँ, दूसरा वैसा ही करे‒यह बात तो पशुओंमें भी है । अच्छे पुरुषोंमें यह बात नहीं होती । अच्छे पुरुषोंको तो आप आग्रह करो, आप गरज करो, तब वे बड़े बनते हैं, गुरु बनते हैं । उनमें यह बात नहीं होती कि मैं ही सबका गुरु बन जाऊँ । मैं अपनी इच्छाके अनुसार दूसरेसे कार्य करा लूँ‒यह अच्छी बात नहीं है, बहुत नीची बात है । भगवान् श्रीरामने जहाँ प्रजाको उपदेश दिया है, वहाँ भी साफ कहा है कि अगर मैं अनुचित बात कह दूँ तो तुम लोग भय छोड़कर मेरेको मना कर देना‒

जौं अनीति  कछु  भाषौं  भाई ।
तौ मोहि बरजहु भय बिसराई ॥
                                    (मानस, उत्तर ४३ । ३)

ऐसा कहनेका अर्थ यह हुआ कि मैं जैसा कहूँ, वैसा ही करो‒यह बात नहीं है, आपको जो अच्छा लगे, वैसा करो । भगवान् किसीके साथ जबर्दस्ती नहीं करते ।

  (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘अच्छे बनो’ पुस्तकसे