।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
पौष कृष्ण त्रयोदशी, वि.सं.२०७२, गुरुवार

परमात्मप्राप्तिकी सुगमता



(गत ब्लॉगसे आगेका)
आप इस परिवर्तनशील संसारसे ऊँचे उठ जाओगे, इसमें फँसे नहीं रहोगे तो आपको मुक्तिका आनन्द मिलेगा । अगर संसारसे विमुख होकर परमात्माके सम्मुख हो जाओगे तो आपको परम आनन्द मिलेगा । इस प्रकार दुःखोंकी अत्यन्त निवृत्ति और परम आनन्दकी प्राप्ति होना मनुष्यमात्रके लिये सुगम है । अगर आप सुगम नहीं मानते हो तो सम्भव तो अवश्य ही है । पशु, पक्षी, वृक्ष आदिके लिये इसकी सम्भावना नहीं है । क्या भूत, प्रेत, पिशाच आदिके लिये इसकी सम्भावना है ? क्या गाय, भैंस, भेड़, बकरी आदिके लिये इसकी सम्भावना है ? वास्तवमें मनुष्यके लिये इसकी सम्भावना  है‒इतनी ही बात नहीं है, प्रत्युत यह बहुत सुगम है । आपको विश्वास नहीं होता तो उसका हमारे पास कोई इलाज नहीं है । आप कुछ-न-कुछ कल्पना करके मेरे लिये ऐसा मान लेते हो कि यह तो ऐसे ही कहता है ! मैंने कोई भाँग नहीं पी है । कोई नशेमें आकर मैं नहीं कहता हूँ । फिर भी आपका विश्वास नहीं बैठता तो उसका कोई इलाज नहीं है ।

भगवत्प्राप्ति बहुत सुगम है, बहुत सरल है । संसारमें इतना सुगम काम कोई है ही नहीं, हुआ ही नहीं, होगा ही नहीं, हो सकता ही नहीं । भगवान्‌ने कृपा करके अपनी प्राप्तिके लिये ही मानव-शरीर दिया है, अतः उनकी प्राप्तिमें सुगमता नहीं होगी तो फिर सुगमता किसमें होगी ? भगवत्प्राप्तिके सिवाय मनुष्यका क्या प्रयोजन है ? दुःख भोगना हो तो नरकोंमें जाओ, सुख भोगना हो तो स्वर्गमें जाओ और दोनोंसे ऊँचा उठकर असली तत्त्वको प्राप्त करना हो तो मनुष्य-शरीरमें आओ । ऐसी विलक्षण स्थिति मनुष्य-शरीरमें ही हो सकती है और बहुत जल्दी हो सकती है । इसमें आपको केवल इतना ही काम करना है कि आप इसकी उत्कट अभिलाषा जाग्रत् करो कि हमें तो इसीको लेना है । इतनी जोरदार अभिलाषा जाग्रत् हो कि आपको धन और भोग अपनी तरफ खींच न सकें । सुख-सुविधा, सम्मान, आदर‒ये आपको न खींच सकें । जैसे बचपनमें खिलौने बड़े अच्छे लगते थे, पी-पी सीटी बजाना बड़ा अच्छा लगता था, पर अब आप उनसे ऊँचे उठ गये । अब वे अच्छे नहीं लगते । अब मिट्टीका घोड़ा, सीटी आदि अच्छे लगते हैं क्या ? क्या मनमें यह बात आती है कि हाथमें झुनझुना ले लें और बजायें ? जैसे इनसे ऊँचे उठ गये, इस तरहसे पदार्थोंसे, भोगोंसे, रुपयोंसे, सुखसे, आरामसे, मानसे, बड़ाईसे, प्रतिष्ठासे, वाह-वाहसे ऊँचे उठ जाओ, तो उस तत्त्वकी प्राप्ति स्वतः हो जायगी । न सम्मान रहेगा, न प्रतिष्ठा रहेगी, न पदार्थ रहेंगे, न रुपये रहेंगे, न कुटुम्ब रहेगा, न शरीर रहेगा, न यह परिस्थिति रहेगी । ये तो रहेंगे नहीं । इनके रहते हुए इनसे ऊँचे उठ जाओ तो तत्त्वकी प्राप्ति तत्काल हो जाय; क्योंकि वह तो नित्यप्राप्त है । केवल इधर उलझे रहनेके कारण उसकी अनुभूति नहीं हो रही है ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘स्वाधीन कैसे बनें ?’ पुस्तकसे