।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
माघ शुक्ल तृतीया, वि.सं.२०७२, गुरुवार
रासलीला‒प्रतिक्षण वर्धमान प्रेम


भगवान्‌ अनन्त हैं, इसलिये उनका सब कुछ अनन्त है‒‘हरि अनंत हरि कथा अनंता’ (मानस, बाल १४० । ३) । उनका प्रेम भी अनन्त है । इसलिये प्रेममें अनन्तरस है । अनन्तरसका तात्पर्य है कि प्रेम प्रतिक्षण वर्धमान है । प्रतिक्षण वर्धमान होनेके लिये प्रेममें विरह और मिलन‒दोनोंका ही होना आवश्यक है । कारण कि विरहके बिना रसकी वृद्धि नहीं होती और मिलनके बिना रसकी अनुभूति नहीं होती, उसका आस्वादन नहीं होता । संसारमें तो संयोगका रस भी नहीं रहता और वियोगका रस भी नहीं रहता; क्योंकि संसारका नित्यवियोग है । परन्तु मिलन (योग)-का रस भी नित्य रहता है और विरह (वियोग)-का रस भी नित्य रहता है; क्योंकि भगवान्‌का नित्ययोग है । संसारके नित्यवियोगके अन्तर्गत संयोग-वियोग होते हैं और भगवान्‌के नित्ययोगके अन्तर्गत मिलन-विरह होते हैं । जैसे, माता कौसल्या सुमित्रासे कहती हैं कि ‘हे सुमित्रे यदि रामजी वनमें चले गये हैं तो फिर मेरेको दीखते क्यों हैं ? और यदि वनमें नहीं गये हैं तो सामने दीखनेपर भी हृदयमें जलन क्यों होती है ? अतः प्रेममें मिलन और विरह दोनों साथ-साथ रहते हैं‒

अरबरात  मिलिबे   को  निसिदिन,
मिलेइ रहत मनु  कबहुँ  मिलै  ना ।
‘भगवतरसिक’   रसिक   की  बातें,
रसिक बिना कोउ समुझि सकै ना ॥

‘अरबरात मिलिबे को निसिदिन मिलेइ रहत’‒यह मिलन है और ‘मनु कबहुँ मिले ना’‒यह विरह है । राधाजी सखीसे कहती हैं कि तुम धन्य हो जो श्रीकृष्णको देखती हो ! मैंने तो आजतक श्रीकृष्णको देखा ही नहीं ! कारण कि जब श्रीकृष्ण सामने आये तो राधाजीकी दृष्टि उनके कर्णकुण्डलमें ही अटक गयी, स्थिर हो गयी, उससे आगे बढ़ी ही नहीं ! फिर वे श्रीकृष्णको कैसे देखें ?

भगवान्‌का मिलन और विरह दोनों ही नित्य हैं, अनिर्वचनीय हैं, दिव्य हैं, जिनसे प्रेम प्रतिक्षण वर्धमान होता है । मिलनमें प्रेमीको अपनेमें प्रेमकी कमी मालूम देती है कि जैसे भगवान्‌ हैं, वैसा (भगवान्‌के लायक) मेरेमें प्रेम नहीं है; और विरहमें प्रेमीको कभी प्रेमास्पदकी विस्मृति नहीं होती, प्रत्युत निरन्तर स्मृति (तल्लीनता) बनी रहती है । यह मिलन और विरह‒दोनों भगवान्‌ देते हैं और दोनों भगवत्स्वरूप ही होते हैं । वे ‘विरह’ इसलिये देते हैं कि भक्त अपनेमें प्रेमकी कमीका अनुभव करे और कमीका अनुभव होनेसे प्रेम बढ़े । वे ‘मिलन’ इसलिये देते हैं कि भक्त प्रेमका अनुभव करे, आस्वादन करे ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मेरे तो गिरधर गोपाल’ पुस्तकसे