।। श्रीहरिः ।।



आजकी शुभ तिथि
फाल्गुन शुक्ल पंचमी, वि.सं.२०७२, रविवार
शीघ्र भगवत्प्राप्ति कैसे हो ?

 

साधकोंके सम्मुख दो बातें विशेषरूपसे आती हैं‒एक संसारकी और दूसरी परमात्माकी । संसार नाशवान् है और परमात्मा अविनाशी हैं । संसारके सम्बन्धसे दुःख-ही-दुःख होता है और परमात्माके सम्बन्धसे आनन्द-ही-आनन्द होता है, दुःखका लेश भी नहीं होता । संसारका आश्रय कभी टिकता ही नहीं है और परमात्माका आश्रय कभी मिटता नहीं है । इन बातोंको हम संत-महापुरुषोंसे सुनते हैं, वेद पुराणादि शास्त्रोंमें पढ़ते हैं और स्वयं मानते भी हैं, परन्तु ऐसा मानते हुए भी हमारा दुःख दूर क्यों नहीं हो रहा है ? हमें परम आनन्दकी प्राप्ति क्यों नहीं हो रही है ? हमें भगवान् क्यों नहीं मिल रहे हैं ?
अभी जैसे हरिः शरणम्, हरिः शरणम् कीर्तन हुआ तो भगवान्‌के चरणोंकी शरण लेना बहुत ही बढ़िया बात है, क्योंकि संसारका आश्रय टिकेगा नहीं, भगवान्‌का आश्रय ही टिकेगा । ये बातें सुनते हैं, समझते हैं, मानते हैं, फिर भी वह गुत्थी कहाँ उलझी हुई है जो सुलझती नहीं है । इस समस्यापर हमें गम्भीरतापूर्वक विचार करना है ।
इस विषयमें अनेक बातें कही जा सकती हैं; परन्तु एक बातपर हमें विशेष ध्यान देना है । वह यह है कि बातें सुनने, पढ़नेसे केवल बौद्धिक या बातूनी ज्ञान होता है । परमात्मतत्त्वकी प्राप्तिमें अपनी उत्कट अभिलाषा ही काम आती है, बौद्धिक या बातूनी ज्ञान कुछ भी काम नहीं आता । जिस दिन हमें संसारका सम्बन्ध सुहायेगा नहीं और हम परमात्माके बिना रह सकेंगे नहीं, उसी दिन हमें परमात्माकी प्राप्ति हो जायेगी ।
 
संसार असत्य है‒ऐसा मानते हुए भी यदि हम सांसारिक सुख-भोगोंको भोगते रहेंगे तो उससे हमें कोई लाभ नहीं होगा । परमात्मा सत्य है, उनका नाम सत्य है‒ऐसा कहनेमात्रसे कोई विशेष लाभ नहीं होगा । उलझन ज्यों-की-त्यों ही बनी रहेगी । इस उलझनको तभी मिटाया जा सकता है, जब हमारी वर्तमान समस्या यही बन जाय कि संसारसे सम्बन्ध-विच्छेद कैसे हो ? परमात्माकी प्राप्ति कैसे हो ?
 
यह ठीक है कि हम परमात्माकी प्राप्ति चाहते हैं; तत्त्वज्ञान चाहते हैं; मुक्ति चाहते हैं; भगवान्‌के दर्शन चाहते हैं, भगवत्प्रेम चाहते हैं; परन्तु हमारी इस चाहकी सिद्धिमें एक बहुत बड़ी बाधा हमारी यह मान्यता है कि भविष्यमें काफी समयके बाद‒भगवत्प्रेम होगा; समय लगेगा; तब कहीं भगवान् दर्शन देंगे; समय पाकर ही तत्त्वज्ञान होगा, परमात्माकी प्राप्तिमें तो समय लगेगाइत्यादि । यह जो भविष्यकी आशा है कि फिर होगा, वही परमात्मप्राप्तिमें सबसे बड़ी बाधा है !
 
   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
 ‒‘साधकोंके प्रति’ पुस्तकसे