।। श्रीहरिः ।।



आजकी शुभ तिथि
फाल्गुन शुक्ल सप्तमी, वि.सं.२०७२, मंगलवार
होलाष्टकारम्भ
शीघ्र भगवत्प्राप्ति कैसे हो ?
 
 

 
(गत ब्लॉगसे आगेका)
 
भगवान् कहते हैं इतनेसे ही काम चलाओ औरकी जरूरत नहीं है, इसलिये चाह पूरी नहीं करते । परन्तु जो भगवान्‌के लिये दुःखी हो जायेगा उसका दुःख भगवान्‌से नहीं सहा जायेगा । उनके मिले बिना ही हम नींद लेते है, आराम करते है ! बड़ा काला दिन है । इस प्रकार यदि उस प्रभुके बिना क्षण-क्षणमें महान् दुःख होने लगे, प्राण छटपटाने लगें तो भगवान् उसी समय मिल जायेंगे । उनके मिलनेमें देरी नहीं है । भक्तका भगवत्प्राप्ति-विषयक दुःख वे सह नहीं सकते । वे कृपाके समुद्र है !
फिर भी संसार दुःखी है न ! संसार तो दुःखके लिये ही दुःखी हो रहा है । इसे दुःख चाहिये, इसे आफत और चाहिये, धन और चाहिये, बेटा-पोता और चाहिये ! भगवान्‌के लिये अगर दुःखी हो जाय तो वे तुरन्त आ जायेंगे । इसके लिये भीतर एकमात्र यही लगन पैदा हो जाय कि भगवान्‌के दर्शन कैसे हों ? भगवान् कैसे मिलें ? क्या करूँ ? कहाँ जाऊँ ? ऐसी छटपटाहट तो लगे !
भगवान् प्राणिमात्रका आकर्षण कर रहे हैं‒उन्हें खींच रहे हैं, इसीलिये उन्हें कृष्ण कहते हैं । प्राणी जिस अवस्था या परिस्थितिमें रहता है, उसमें भगवान् उसे टिकने नहीं देते‒यही उनका खींचना है ! यह भगवान्‌का बुलावा है कि मेरे पास आओ ! गीतामें भगवान् श्रीकृष्ण कहते हैं‒
आब्रह्मभुवनाल्लोकाः पुनरावर्तिनोऽर्जुन ।
मामुपेत्य तु कौन्तेय पुनर्जन्म न विद्यते ॥
                                                  (८ । १६)
हे अर्जुन ! ब्रह्मलोकपर्यन्त सब लोक पुनरावर्ति अर्थात् जिनको प्राप्त होकर पीछे संसारमें आना पड़े, ऐसे है, परन्तु हे कौन्तेय ! मुझको प्राप्त होकर पुनर्जन्म नहीं होता ।’
तात्पर्य यह है कि भगवत्प्राप्तिके बिना मनुष्य कहीं भी टिकता नहीं है और बारंबार संसारमें ही घूमता रहता है । भगवान्‌को प्राप्त होनेपर ही मनुष्य टिकता है ।
यद्‌गत्वा न निवर्तन्ते तद्धाम परमं मम ॥
                                                                      (गीता १५ । ६)
जहाँ जानेपर मनुष्य लौटकर नहीं आता, वह मेरा परमधाम है ।’
 
आप चाहे कितनी भी शक्ति लगा लें, न तो शरीर सदा रहेगा और न कुटुम्बी ही सदा रहेंगे । संसारकी कोई भी वस्तु आपके पास सदा नहीं रहेगी । कारण यही है कि भगवान् निरन्तर आपको खींच रहे हैं । यह उनकी हमपर महान् कृपा है ! अतएव यदि आप संसारसे विमुख हो जाओंगे तो भगवान्‌की प्राप्ति हो जायेगी और आप सदाके लिये सुखी हो जाओगे । यदि संसारमें ही रचे-पचे रहे तो दुःखका अन्त कभी आयेगा ही नहीं और नित्य नया-से-नया, तरह-तरहका दुःख मिलता ही रहेगा ।
 
   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
 ‒‘साधकोंके प्रति’ पुस्तकसे