।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
फाल्गुन पूर्णिमा, वि.सं.२०७२, बुधवार
पूर्णिमा, श्रीचैतन्यमहाप्रभु-जयन्ती
कामना और आवश्यकता


(गत ब्लॉगसे आगेका)

इतिहास पढ़ लें, भागवत आदि ग्रन्थ पढ़ लें, ऐसा कोई व्यक्ति नहीं मिलेगा, जिसकी सब कामनाएँ पूरी हो गयी हों । कामनाका तो त्याग ही होता है, पूर्ति नहीं होती । संसार क्षणभंगुर है, प्रतिक्षण नष्ट होनेवाला है, फिर उसकी कामना पूरी कैसे होगी ?[*] शरीर-संसारसे सम्बन्ध माननेके कारण हमें अपनेमें जो कमी प्रतीत होती है, उसकी पूर्ति परमात्माकी प्राप्तिसे ही होगी । हमें त्रिलोकीका आधिपत्य मिल जाय, संसारमात्र मिल जाय, अनेक ब्रह्माण्ड मिल जायँ तो भी हमारी आवश्यकताकी पूर्ति नहीं होगी । न कामनाकी पूर्ति होगी, न आवश्यकताकी । क्योंकि जो कुछ मिलेगा, शरीरको ही मिलेगा, हमें (स्वयंको) नहीं मिलेगा । जड़ वस्तु चेतनतक कैसे पहुँच सकती है ? परमात्माके अंशको परमात्माकी ही आवश्यकता है । मेरी मुक्ति हो जाय, मेरा कल्याण हो जाय, मेरेको तत्वज्ञान हो जाय, मैं सम्पूर्ण दुःखोंसे छूट जाऊँ, मेरेको महान् आनन्द मिल जाय, मेरेको भगवत्प्रेम मिल जाय‒यह सब स्वयंकी आवश्यकता है । कामनाका तो त्याग ही होता है, पर आवश्यकताका त्याग कभी हुआ नहीं, होगा नहीं, हो सकता नहीं । आवश्यकताकी तो पूर्ति ही होती है । जितने भी सन्त-महात्मा हो चुके हैं, उनकी कामनाओंका त्याग हुआ है और आवश्यकताकी पूर्ति हुई है । इसलिये गीतामें कामनाके त्यागपर बहुत जोर दिया गया है ।

जहाँ जीवने प्रकृतिके अंशको पकड़ा है, वहींसे कामना और आवश्यकताका भेद उत्पन्न हुआ है । अगर जीव प्रकृतिके अंशको छोड़ दे तो कामनाका त्याग हो जायगा और आवश्यकताकी पूर्ति हो जायगी । जड़तासे सम्बन्ध-विच्छेद होते ही कामनाओंका नाश और परमात्माकी प्राप्ति स्वतः हो जाती है, क्योंकि परमात्मा सब जगह नित्य-निरन्तर विद्यमान हैं । परमात्माकी प्राप्तिमें संसारकी कामना ही बाधक है । जड़ताको साथमें रखनेसे ही आवश्यकताकी पूर्ति (परमात्मप्राप्ति) नहीं होती । साधन करनेवाले बहुत-से लोग सांसारिक कामनाकी पूर्तिकी तरह ही पारमार्थिक आवश्यकताकी पूर्तिके लिये भी उद्योग करते हैं । अर्थात् जड़के द्वारा चेतनकी प्राप्ति चाहते हैं, शरीर-इन्द्रियाँ-मन-बुद्धिके द्वारा परमात्माकी प्राप्ति चाहते हैं । परन्तु यह सिद्धान्त है कि जड़के द्वारा चेतनकी प्राप्ति होती नहीं होनी सम्भव नहीं । किन्तु चेतनकी प्राप्ति जड़के त्यागसे ही होती है ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘सत्संग मुक्ताहार’ पुस्तकसे


[*] कुछ कामनाएँ पूरी होती हैं, कुछ पूरी नहीं होतीं‒यह सबका अनुभव है । इससे सिद्ध होता है  कामनाकी पूर्ति-अपूर्ति कामनाके अधीन नहीं है, प्रत्युत किसी विधान (पूर्वकृत कर्मफल) के अधीन है ।