।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
चैत्र कृष्ण द्वितीया, वि.सं.२०७२, शुक्रवार
कामना और आवश्यकता


(गत ब्लॉगसे आगेका)

हम गृहस्थका त्याग कर दें, रुपयोंका त्याग कर दें शरीरका त्याग कर दें तो आवश्यकताकी पूर्ति हो जायगी‒ऐसी बात नहीं है । आवश्यकताकी पूर्ति इनकी इच्छाका त्याग करनेसे होगी । गृहस्थ बना रहे, रुपये बने रहें, शरीर बना रहे, मान-बड़ाई बनी रहे‒यह असम्भव है । असम्भवकी इच्छा कभी पूरी होगी ही नहीं, प्रत्युत इच्छा करते हुए मर जायँगे और जन्म-मरणके चक्करमें वैसे ही पड़े रहेंगे । इच्छाकी कभी पूर्ति नहीं होगी और आवश्यकताका कभी त्याग नहीं होगा । कारण कि इच्छा शरीर (जड़) को लेकर है और उसका विषय नाशवान् है तथा आवश्यकता स्वयँ (चेतन) को लेकर है और उसका विषय अविनाशी है । अतः चाहे इच्छाका त्याग कर दें तो योग सिद्ध हो जायगा‒‘तं विद्याद्दुःखसंयोगवियोगं योगसञ्ज्ञितम्’ और चाहे आवश्यकताकी पूर्ति कर लें तो योग सिद्ध हो जायगा‒समत्वं योग उच्यते’ । जड़ताका त्याग भी योग है और समताकी प्राप्ति भी योग है । जड़ताके त्यागसे चिन्मयताकी प्राप्ति हो जायगी और चिन्मयताकी प्राप्तिसे जड़ताका त्याग हो जायगा । दोनों एक साथ कभी रहेंगे नहीं ।

जैसे पानीसे भरा हुआ घड़ा हो तो उसको खाली करना है और उसमें आकाश भरना है‒ये दो काम दीखते हैं । पर वास्तवमें दो काम नहीं हैं प्रत्युत एक ही काम है‒घडे़को खाली करना । घडे़मेंसे पानी निकाल दें तो आकाश अपने-आप भर जायगा । ऐसे ही संसारकी कामनाका त्याग करना और परमात्माकी आवश्यकता पूरी करना‒ये दो काम नहीं हैं । संसारकी कामनाका त्याग कर दें तो परमात्माकी आवश्यकता अपने-आप पूरी हो जायगी । केवल संसारकी इच्छासे ही परमात्मा अप्राप्त हो रहे हैं ।

        जीव, जगत् और परमात्मा‒ये तीन ही वस्तुएँ हैं । जीव क्या है ? मैं जीव हूँ । जगत् क्या है ? यह जो दीख रहा है, यह जगत् है । परमात्मा क्या है ? जो जीव और जगत् दोनोंका मालिक है, वह परमात्मा है । जीव और जगत्‌का तो विचार होता है, पर परमात्माका विचार नहीं होता, प्रत्युत विश्वास होता है । कारण कि विचारका विषय वह होता है, जिसके विषयमें हम कुछ जानते हैं, कुछ नहीं जानते । जिसके विषयमें कुछ नहीं जानते, उसपर विचार नहीं चलता । उसपर तो विश्वास ही किया जाता है । अतः विचार करके जगत्‌का त्याग करना है और श्रद्धा-विश्वास करके परमात्माको स्वीकार करना है । जड़ताका त्याग करनेमें कोई भी परतन्त्र नहीं है; क्योंकि जड़ता विजातीय है ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)

‒‘सत्संग मुक्ताहार’ पुस्तकसे