।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
चैत्र कृष्ण त्रयोदशी, वि.सं.२०७२, मंगलवार
मनुष्यकी मूर्खता


(गत ब्लॉगसे आगेका)

होश आया कि नहीं ? आप जरा सोचो । क्या कर रहे हो ? अगर ऐसा ही करोगे तो दुःख पाओगे ! दुःख ! दुःख ! दुःख ! याद कर लो । और आज अगर इससे ऊँचे उठ जाओगे तो महान् आनन्द होगा । जो किसी जन्ममें कभी नहीं हुआ, वह आनन्द होगा और सबको हो जायगा । जो ऊँचा उठ जायगा, उसको महान् आनन्द होगा । जिन लोगोंने ऐसा किया है, उनके आनन्द हुआ है, होता है और होगा । होनेकी रीति है । यह बिलकुल हमारे हाथकी बात है, कठिन बात नहीं है । इसमें किसीकी सहायताकी जरूरत नहीं है । सहायता करनेवाले भगवान् सन्त, महात्मा, धर्म और शास्त्र सब हमारे साथमें हैं, पर सुखी-दुःखीके साथ कोई नहीं है । घरवाले भी नहीं हैं । खास माँ-बाप नहीं हैं । बेटा-बेटी नहीं है, लुगाई (स्त्री) आपके साथमें नहीं है, कोई आपके साथ नहीं है । ऐसी बेइज्जती कराते हो, मनुष्य होकर ऐसी फजीती कराते हो अपनी ! राम ! राम ! राम !

भगवान्‌ने अपनी प्राप्तिका अधिकार दिया । उस अधिकारको लेकर इतना अनर्थ करते हो ? क्या दशा होगी । आज सुधर जाय, अभी-अभी सुधर सकते हैं । हम इन आने-जानेवाली चीजोंमें सुखी-दुःखी नहीं होंगे, बस । केवल इतनी बात है, लम्बी-चौड़ी है ही नहीं । सुख-दुःख हो जाता है तो होने दो, कोई पुरानी आदतसे हुआ है, हम नहीं मानेंगे । उठाकर फेंक देंगे हम । आपमें वह ताकत है । आपमें वह सामर्थ्य है । भगवान् भी सहायता देनेके लिये तैयार हैं । साधु, सन्त, महात्मा जितने हैं, सब हमारे पक्षमें हैं । सुखी-दुःखी होते रहेंगे तो कोई हमारे पक्षमें नहीं होगा और तो कौन होगा ? आपका शरीर भी साथमें नहीं रहेगा । कोई आपके साथ नहीं । इसमें कोई सन्देह हो तो बोलो । काम, क्रोध, लोभ तभी आते हैं, जब आने-जानेवाली चीजसे आप अपनी उन्नति और अवनति मानते हो । आने-जानेवाली चीजसे अगर सुखी-दुःखी नहीं होते तो काम और क्रोध कैसे आते, बताओ ! होशमें आकर बोलो ! सिवा आने-जानेवाली चीजके और क्या है ये काम, क्रोध और लोभ !

सच्ची बातके सामने कच्ची बात कैसे टिकेगी ? और दुःख ही पाना है तो, अंगारोंमें हाथ दो । आने और जानेवाली चीजोंसे राजी और नाराज न हो तो कौन-सा दोष रहेगा ! है ही नहीं कोई दोष । होशमें आकर बोलो ! खास मूल एक ही बात है कि आने-जानेवालोंसे राजी-नाराज न होना । कहते हैं, हमारे मिटता नहीं । बालकके भी मनकी बात नहीं होती तो बालक रो पड़ता है । आपको रोना आता है कि नहीं ? आप जैसा चाहते हो, वैसा नहीं होता तो नींद आती है कि नहीं ? भूख लगती है कि नहीं ? बात सुहाती है कि नहीं ? मौजसे जीते हो, खाते-पीते हो, सो जाते हो, तब तो नहीं मिटेगा । और बेचैनी हो जाय तो अभी मिट जायगी । टिक नहीं सकती । बेचैनी वशकी बात नहीं तो रोना तो आपके वशकी बात है कि नहीं ! दुःखी होना वशकी बात है कि नहीं ? जहाँ वशकी बात नहीं होती तो वहाँ रोता है आदमी । सच्ची है कि झूठी ?

अपना वश नहीं चलता, वहाँ रोता है कि नहीं रोता है ? आप तो कहते हैं कि रोना वशकी बात नहीं है, पर वास्तवमें रोना बन्द होना वशकी बात नहीं है । बातें बनायी हैं बातें, गहरे उतरे नहीं हो ! हमारे वशकी बात न हो और करना चाहते हैं तो सुखी रह सकते हैं क्या ? कोई काट नहीं सकता इस बातको । किसीकी ताकत नहीं, जो काट दे ! इतनी पक्की बात है एकदम सिद्धान्तकी ! आप विचार करो, शान्तिसे विचारो । आने-जानेवाली चीजोंसे सुखी-दुःखी मत होवो । आप रहते हो, चीजें आती-जाती हैं, परिस्थितियाँ आती-जाती हैं । आप अलग हो, आने-जानेवाली चीजें अलग हैं और वे एक रूप नहीं रह सकतीं तो राजी-नाराज कैसे रह सकते हो ?

नारायण !     नारायण !!      नारायण !!!

‒‘भगवत्प्राप्ति सहज है’ पुस्तकसे