।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
चैत्र अमावस्या, वि.सं.२०७२, गुरुवार
बेईमानीका त्याग


(गत ब्लॉगसे आगेका)

देखो ! हमलोग सुनानेवाले हैं न ! चाहे अभिमान भले ही कर लें कि हम सुनाते हैं; परन्तु हम वही सुनाते हैं, जो आपकी चीज है । आप मान सकते हो कि स्वामीजीने हमारेको यह बताया, पर सच्ची बात तो यह है कि आपकी चीज ही आपको दी जाती है । गीताप्रेसके संस्थापक श्रीजयदयालजी गोयन्दका कई दफे पूछते थे, बोलो क्या सुनावें ? तो मेरे कहनेका काम पड़ा है कि जो हमारी है, वो दे दो । सच्ची बात है, वह ज्ञान आपका है, बिलकुल आपका है, वही मैं दे देता हूँ । अगर मैं यह अभिमान करता हूँ कि ‘मैं देता हूँ’ तो यह बड़ी गलती है, इसका दण्ड होगा । आपकी बात आपको दे दूँ तो उऋण हो जाऊँ । जबतक नहीं दी, तबतक ऋणी था । आपने ले ली तो मेरा ऋण उतर गया । कर्जा उतर गया । आपने मेरेको निहाल कर दिया, कर्जेसे रहित कर दिया एकदम सच्ची बात है ।

मैं, मेरी देखी हुई अनुभवकी बात बताता हूँ । ऐसी बातें बीती हैं, जहाँ मैंने कहा कि बहुत बढ़िया बात बताऊँगा तो वहाँ समयपर बात उपजी नहीं है । मैंने खूब जोर लगाया, पर समय पूरा करना मुश्किल हो गया‒यह मेरी बीती हुई बात है । जहाँ मैंने कहा कि भाई, हमारेको तो कुछ आता नहीं, हम जानते नहीं हैं‒ऐसा भाव रहता है तो इतनी बातें कहनेमें आती हैं कि आश्चर्य आता है मेरेको ! यह हमारा अनुभव बताया है आपको । तात्पर्य यह हुआ कि आपकी बात ही आपको देनी है, यह सच्ची बात है । इसी तरह जो चीजें आपके पास हैं, उनको संसारकी समझकर संसारको देनी हैं । जो हमारे पास नहीं है जैसे‒धन हमारे पास है नहीं, तो धन देनेकी हमारेपर जिम्मेवारी नहीं है । जो बातें हम जानते हैं, आप पूछते हो और हम नहीं बतावें तो हमारेपर कर्जा है । बता देते हैं तो कर्जा उतर गया । आपने ले लिया, हमारेको हलका कर दिया, बड़ी कृपा कर दी । इस तरहका बर्ताव करो संसारके साथ, तो मुक्ति स्वतःसिद्ध है, बन्धन तो किया हुआ है ।

जो अपनी चीज नहीं है, उसको अपनी मानी‒यही बेईमानी है और यही बन्धन है; क्योंकि ये चीजें अपनी हैं नहीं, अपने तो परमात्मा हैं और हम परमात्माके हैं । यह बात सच्ची है । जितनी मिली हुई चीजें हैं, चाहे स्थूल शरीर हो, चाहे सूक्ष्म शरीर हो, चाहे कारण शरीर हो‒ये सभी संसारके हैं, संसारसे मिले हैं तो इनको संसारकी सेवामें लगा दो । अगलोंकी (उनकी) चीज अगलोंको (उनको) बता दी, उनकी चीज उनको सौंप दी और उन्होंने स्वीकार कर ली, यह उनकी कृपा है । अपने-आपको भगवान्‌को दे दिया और अपनी चीज संसारको दे दी, तो सदाके लिये निहाल हो जाओ, जो सच्ची बात है । कल मैंने कहा था कि आनेवाली और जानेवाली चीजोंसे आप सुखी और दुःखी क्यों होते हो ? जो आयी है वह चली जायगी । सुखी हो जाओगे तो दुःखी होना ही पड़ेगा । आनेवाली चीजसे सुखी नहीं होओगे तो दुःखी नहीं होना पड़ेगा ।

जैसे इस मकानमें आ गये और अब चले जाओगे तो दुःखी नहीं होना पड़ेगा कि यह गोविन्दभवन छूट गया; क्योंकि हमने पकड़ा ही नहीं । तो इनको पकड़ना जन्म-मरणका कारण है । ऐसे सब संसारकी चीज संसारको सौंप दो और अपनेको परमात्माको सौंप दो तो बिलकुल मुक्त हो गये । अगर सौंप नहीं सको तो भगवान्‌से मदद माँगो कि ‘हे नाथ ! सच्चाईकी मदद चाहते हैं’ और सच्चाईकी मदद सत्यस्वरूप परमात्मा जरूर करेंगे, इसमें सन्देह नहीं है । झूठेकी मदद नहीं होती । सच्चेकी मदद हरेक करेगा, दुनिया करेगी, भगवान् करेंगे, धर्म करेगा, सन्त-महात्मा करेंगे, गुरुजन करेंगे, सभी करेंगे । सच्चे हदयसे जो परमात्मामें लग जाय, उसकी दुनिया चिन्ता करती है । आजकलके गये-गुजरे जमानेमें भी उसके रोटीकी, कपड़ेकी, रहनेकी कमी नहीं रहेगी; क्योंकि वह सच्चे रास्तेपर है ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘भगवत्प्राप्ति सहज है’ पुस्तकसे