।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
वैशाख शुक्ल षष्ठी, वि.सं.२०७३, गुरुवार
श्रीरामानुजाचार्य-जयन्ती
मनकी खटपट कैसे मिटे ?



प्रश्र आया है कि मनकी खटपट (हलचल, अशान्ति) कैसे मिटे ?

बहुत सीधी सरल बात है कि मनमें जो खटपट है, वह अपने जाननेमें आती है । तो जाननेमें जो चीज आती है, देखनेमें जो चीज आती है, वह अपना स्वरूप नहीं होती है । मेरेको मकान दिखा, तो क्या मैं मकान हो गया ? मेरेको एक पत्थर दीख गया, तो क्या मैं पत्थर हो गया ? दीखनेवाली चीज अलग होती है और देखनेवाला अलग होता है । इसमें सन्देह नहीं है । खटपट होती है‒इसका जिसको ज्ञान है, वह आप हो । आप खटपटको देखनेवाले हुए । इसमें सन्देह है क्या ? खटपटको हम देखते हैं और खटपट दीखनेवाली हुई तो हमारे क्या बाधा लगी ? हमारेको पत्थर दीखा, वह तप गया तो हमें क्या, और वह ठण्डा हो गया तो हमें क्या ?

यह जो मनका एक संकल्प है कि यह खटपट न रहे यही खटपटका कारण है; क्योंकि इस संकल्पसे ही खटपटसे सम्बन्ध बना रहता है । मेरे मनमें खटपट न रहे, तो बस, अब खटपट मचेगी । इसलिये मनसे ही अपना सम्बन्ध तोड़ देना है । वास्तवमें मनसे सम्बन्ध है नहीं । केवल माना हुआ सम्बन्ध है । मनको आपने अपना माना है, खटपटको आपने अपनेमें माना है । खटपट पैदा होती है और मिटती है, संकल्प उत्पन्न होते हैं और मिटते हैं, पर आप वही रहते हो । इसमें कोई सन्देह है क्या ? तो ये मिटें या न मिटें, इनको आप छोड़ दो । आप इनके साथ मिलो मत, इनसे राजी और नाराज मत होओ । खटपटसे राजी होना भी उससे मिलना है और नाराज होना भी उससे मिलना है । साधकके लिये यह बहुत बढ़िया चीज है । बस, आप राजी और नाराज मत होओ । जैसे धूप आयी और धूपसे स्वाभाविक मन हटता है, तो छायामें बैठ जाओ । पर न धूपके साथ विरोध करो, न छायाकी प्रशंसा करो । न किसीसे विरोध करना है, न प्रशंसा करनी है, यह साधकका खास काम है ।

ज्ञानयोगी, कर्मयोगी, भक्तियोगी किसी भी साधनामें चलनेवाला योगी हो, जो परिस्थिति आये, उसमें राजी और नाराज न होना सबका काम है, योगिमात्रका काम है । जो परमात्मतत्त्वकी प्राप्ति चाहता है, उसके लिये यह बहुत आवश्यक है । कितनी ही सुन्दर चीज मिले, कितनी ही असुन्दर चीज मिले, कितनी ही अनुकूलता आये, कितनी ही प्रतिकूलता आये, उन दोनोंमें जो सुखी और दुःखी नहीं होता है, वह परमात्माको प्राप्त करता है और जो सुखी और दुःखी होता है, वह संसारमें आता-जाता है, अर्थात् जन्मता-मरता है ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘जीवनका सत्य’ पुस्तकसे