।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
वैशाख शुक्ल सप्तमी, वि.सं.२०७३, शुक्रवार
श्रीगंगासप्तमी
मनकी खटपट कैसे मिटे ?



(गत ब्लॉगसे आगेका)
अनुकूलता-प्रतिकूलता तो सबके आयेगी । जिसके घोड़े हाँकते हैं, उस अर्जुनको भगवान् कहते हैं कि‒भैया ! ये तो  ‘शीतोष्णसुखदुःखदाः’ हैं । इनको तुम सहन कर लो‒‘तांस्तितिक्षस्व’ (गीता २ । १४)इसको मैं मिटा दूँगा, ऐसा नहीं कहा । सहन करनेके लिये कहा ।

राग-द्वेषके वशीभूत न होवे । ठीक और बेठीक मानकर सुखी-दुःखी न होवे । इनकी चिन्ता न करे । फिर सब ठीक हो जायगा । कितनी ही खटपट आवे, आप सुखी-दुःखी मत होओ । यह तो आने-जानेवालीहै । इसका मन्त्र है‒‘आगमापायिनोऽनित्याः’ यह मन-ही-मन जपो । इस भावसे जपो कि यह तो आने-जानेवाली है, अनित्य है । अच्छी या मन्दी कैसी क्यों न हो, खटपट आते ही यह सूत्र (मन्त्र) लगा दो कि ‘आगमापायिनोऽनित्याः’ ये आने-जानेवाली और अनित्य हैं । अनुकूल-से-अनुकूल आये, तो आने-जानेवाली है । प्रतिकूल-से-प्रतिकूल आये, तो आने- जानेवाली है । बिलकुल सच्ची बात है । न अनुकूलता ठहरती है, न प्रतिकूलता ठहरती है । बस, इसको इतनी जान लो कि यह ठहरनेवाली नहीं है । इसमें कोई नया काम नहीं करना है । अब इनको लेकर क्या राजी हों और क्या नाराज हों ?

न प्रहृष्येत्प्रियं प्राप्य नोद्विजेत्प्राप्य चाप्रियम् ।
                                                   (गीता ५ । २०)

प्रिय और अप्रियकी प्राप्तिमें सुखी और दुःखी क्या हों ? बढ़िया-से-बढ़िया परिस्थिति आये, तो वह भी ठहरेगी नहीं, पर आप ठहरते हो ! क्योंकि आपके सामने अनुकूलता और प्रतिकूलता‒दोनों आती हैं और जाती हैं और आप रहते हो । आप वही हो, बस अपनी तरफ ही दृष्टि रखो । ये जो आने-जानेवाली है, इनके साथ मिलो मत‒यही मुक्ति है । इनके साथ मिल जाते हों‒यही बन्धन है । आने-जानेवाली खटपटके साथ, परिस्थितिके साथ मिल जाना है‒बन्धन, और न मिलना है‒मुक्ति । कितनी सरल, सीधी-सादी बात है !

आप कहते हो कि न चाहते हुए भी हम मिल जाते हैं, अनूकूलता-प्रतिकूलताके साथ एकदम मिलना हो जाता है, तो इसका भी उपाय है । इनसे मिल जानेपर भी यह तो ज्ञान है ही कि इनके साथ हम मिल जाते हैं, पर हम अलग हैं और ये अलग हैं । यह बात सच्ची है कि नहीं ? खटपट पैदा होती है, मिटती है; आती है, जाती है और आप रहते हो । तो खटपट और आप अलग-अलग दो हुए कि एक ?

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘जीवनका सत्य’ पुस्तकसे