।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
वैशाख शुक्ल दशमी, वि.सं.२०७३, सोमवार
एकादशी-व्रत कल है
संसार ‘नहीं’ है और परमात्मा ‘है’



[परम श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराजके प्रातःकालीन प्रवचन]

अपना कल्याण चाहनेवाला साधक यदि दृढ़तासे यह मान ले कि ‘परमात्मा है’ और ‘संसार नहीं है’ । तो संसारका आकर्षण मिटकर परमात्मासे स्वतः प्रेम हो जायगा ।

‘संसार है’ ऐसा माननेसे ही विषय-भोग भोगते हैं और सुख-सामग्री मानकर पदार्थोंका संग्रह करते हैं‒इतनी ही बात नहीं है बल्कि अपना निर्णय भी कर लेते हैं‒

कामोपभोगपरमा एतावदिति निश्चिताः ॥
                                            (गीता १६ । ११)

जो मनुष्य कामनाके अनुसार उपभोग परायण है उनका यह निश्चय होता है कि सुख भोगना और संग्रह करना‒इसके सिवा और कुछ नहीं है ।

शास्त्र, सत्संग, अपने विचार और अनुभवसे प्रायः हम सभी यह जानते हैं कि संसारका कोई भी पदार्थ अथवा सुख सदा रहनेवाला नहीं है । हमारे पूर्वज (बाप-दादा आदि) भी नहीं रहे‒कालके गालमें समा गये, तो हमारे शरीर (जो उन्हीं धातु-पदार्थोंसे बने है) सदा कैसे रहेंगे ? इसी प्रकार सुखके रहने और मिलनेका केवल बहम है । भगवान् कहते हैं‒

ये हि संस्पर्शजा भोगा दुःखयोनय एव ते ।
आद्यन्तवन्तः कौन्तेय   न तेषु रमते बुधः ॥
                                                                            (गीता ५ । २२)

‘जो इन्द्रिय तथा विषयोंके संयोगसे उत्पन्न होनेवाले सब भोग हैं, वे विषयी पुरुषोंको सुखरूप दीखते हैं, पर दुःखके कारण हैं और आदि-अन्तवाले अर्थात् अनित्य हैं । इसलिये हे अर्जुन ! बुद्धिमान् विवेकी पुरुष उनमें नहीं रमा करता ।’

अगर संसार अपना होता तो हमें याद रहता, किन्तु पिछले जन्मके धन, शरीर, कुटुम्ब आदि कितने थे, कौन थे, कहाँ थे, यह आपको यादतक नहीं है । जैसी दशा पिछले जन्मके व्यक्ति, पदार्थोंके सम्बन्धकी हुई, वही दशा वर्तमानके धनादिकी होगी । अतः इन नाशवान् पदार्थों आदिके लिये समझ, समय और सामर्थ्यको नष्ट नहीं करना चाहिये । इन धन, शरीरादिके द्वारा निष्कामभावसे अर्थात् बदलेमें कुछ न चाहकर सबकी सेवा कर देनी चाहिये । निःस्वार्थभावसे जिनकी सेवा करते हैं, उनके ही पदार्थ समझकर सेवामें लगा देंगे तो उनको प्रसन्नता होगी और आप असंग हो जायँगे । संसारमें अपनापनका सम्बन्ध केवल दूसरोंकी सेवा करनेके लिये है । ऐसा करनेसे आपको परमात्माकी प्राप्ति हो जायगी ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘जीवनका सत्य’ पुस्तकसे