।। श्रीहरिः ।।



आजकी शुभ तिथि
वैशाख कृष्ण दशमी, वि.सं.२०७३, सोमवार
एकादशी-व्रत कल है
मुक्तिका सुगम उपाय
  


(गत ब्लॉगसे आगेका)
बीमारी आ गयी तो बहुत ठीक है, बीमारी चली गयी तो बहुत ठीक है । किसीने अपमान कर दिया तो बहुत ठीक है, किसीने सम्मान कर दिया तो बहुत ठीक है । कोई मान करे, कोई अपमान करे । कोई भोजन दे, कोई भोजन न दे । कोई सुनना चाहे, कोई सुनना न चाहे । कोई मिलना चाहे, कोई मिलना न चाहे । अपना उससे क्या मतलब ? अपनी कोई जरूरत नहीं । कोई परवाह नहीं । हमारा न जीनेसे मतलब है, न मरनेसे मतलब है । न किसीके आनेसे मललब है, न किसीके जानेसे मतलब है । न मिलनेसे मतलब है, न नहीं मिलनेसे मतलब है । न करनेसे मतलब है, न नहीं करनेसे मतलब है ।

नैव तस्य कृतेनार्थो   नाकृतेनेह कश्चन ।
न चास्य सर्वभूतेषु कश्चिदर्थव्यपाश्रय ॥
                                                                     (गीता ३ । १८)

‘उस महापुरुषका इस संसारमें न तो कर्म करनेसे कोई प्रयोजन रहता है और न कर्म न करनेसे ही कोई प्रयोजन रहता है तथा सम्पूर्ण प्राणियोंमें किसी भी प्राणीके साथ इसका किंचिन्मात्र भी स्वार्थका सम्बन्ध नहीं रहता ।’

सब काम भगवान्‌के लिये ही करना है । अपने लिये कुछ करना है ही नहीं । न कहीं जाना है, न आना है, न रहना है । फिर सब झंझट मिट जायगी । निरन्तर आनन्द रहेगा, मौज रहेगी । हमारी कोई जरूरत नहीं, न भोजनकी जरूरत, न व्याख्यानकी जरूरत, न मिलनेकी जरूरत । कोई खिलाना चाहे तो खायेंगे, सुनना चाहे तो सुनायेंगे, मिलना चाहे तो मिलेंगे । इतनेसे ही जन्म सफल हो जायगा ! कोई शास्त्रीय अनुष्ठान करनेकी जरूरत नहीं । कहीं जाना नहीं, कहीं आना नहीं । कहीं देना नहीं, कहीं लेना नहीं । अमुक जगह जाना है, उनसे मिलना है‒यह है ही नहीं । हमारी कोई मरजी है ही नहीं । इससे मुक्ति नहीं होगी तो और क्या होगा ?

भगवान्‌ने कृपा करके मानव-जन्म दिया है । उस मानवजन्मको सफल कर लेना मनुष्यका कर्तव्य है । वह मानवजन्म इस बातसे सफल हो जायगा कि मेरा कुछ नहीं है, मेरेको कुछ नहीं चाहिये और मेरेको अपने लिये कुछ नहीं करना है । कोई ठीक करे या बेठीक करे, मरजी आये सो करे, हमें किसीसे कुछ नहीं कहना है । कभी मनमें आ जाय तो कह दे कि भाई, ऐसा मत करो । वह कहे कि ‘जा-जा, तेरी बात नहीं मानता’ तो बहुत ठीक है, मौज हो गयी । इसमें क्या कठिनता है ?

सदा दीवाली सन्तके आठों पहर आनन्द ।

आठों पहर आनन्द-ही-आनन्द, मौज-ही-मौज है । कोई पूछे कि आपको कहीं जाना है तो कहे कि ना, हमारेको न जाना है, न आना है । कोई कहे ‘बैठ जाओ’ तो बैठ जाय, ‘सो जाओ’ तो सो जाय, ‘चलो’ तो चलो, ‘नहीं चलो’ तो नहीं चलो । कितनी सुगम बात है ! ‘जाहि विधि राखे राम ताहि विधि रहिये ।’ यह सबको सुख देनेवाली, आनन्द देनेवाली बात है । कोई भोजन कराना चाहे तो अच्छी बात, नहीं कराना चाहे तो अच्छी बात । कोई सुनना चाहे तो अच्छी बात, नहीं सुनना चाहे तो अच्छी बात । कोई मिलना चाहे तो अच्छी बात, नहीं मिलना चाहे तो अच्छी बात । अपने मस्तीसे भजन करो, कीर्तन करो, नामजप करो । इसीसे मनुष्यजन्म सफल हो जायगा ।

नारायण !     नारायण !!     नारायण !!!

‒‘सत्यकी खोज’ पुस्तकसे