।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
वैशाख शुक्ल चतुर्दशी, वि.सं.२०७३, शुक्रवार
श्रीनृसिंहचतुर्दशीव्रत
तात्त्विक प्रश्नोत्तर


(गत ब्लॉगसे आगेका)

प्रश्नक्या भूलवश ऐसा अहंकार हो सकता है कि हमने प्रभुको सर्वस्व अर्पण कर दिया है ?

स्वामीजीनहीं हो सकता । यदि अहंकार होता है तो वास्तवमें पूर्ण समर्पण हुआ ही नहीं । वस्तुओंका भूलसे अपना माना था, वह भूल मिट गयी (अर्पण कर दिया) तो अभिमान कैसा ?

प्रश्नशास्त्रमें विधि-निषेधरूप धर्म बताया है । पूर्ण समर्पण करनेवालेको धर्म त्यागना पड़ेगा और धर्म त्यागते हैं तो शास्त्र छूट जायगा ?

स्वामीजीछूटेगा ही नहीं, प्रत्युत पूर्ण समर्पण करनेके बाद उससे नया शास्त्र बनेगा । शास्त्र छोड़नमें दोष है, छूटनेमें कोइ दोष नहीं । शास्त्र (शासन) साधकके लिये है, महापुरुषके लिये नहीं‒‘आत्मन्येव च सन्तुष्टस्तस्य कार्यं न विद्यते’ (गीता ३ । १७) । ऐसे महापुरुषके लिये शास्त्र निवृत्त हो जात हैं ।

प्रश्नजैसे किसीको मकान बेचनेपर उस घरमें रहनेवाले साँप, बिच्छू छिपकली आदि भी उसके पास जायँगे, ऐसे ही सर्वस्व अर्पण करनेवालेके गुण-दोष भी अर्पित हो जायँगे ?

स्वामीजीअग्निमें जो भी डाला जाय, सब अग्निरूप हो जाता है । तभी गीतामें आया है‒‘शुभाशुभफलैरेवं मोक्ष्यसे कर्मबन्धनैः’ (९ । २८) । भगवान्‌ने भी कहा है‒‘सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि’ (गीता १८ । ६६) । पापोंसे मुक्त कर दूँगा, न कि पुण्योंसे ?

प्रश्नबिना अहंकारके निषिद्ध कर्म हो जाय और अहंकारसे शुभ कर्म हो जाय तो दोनोंमें क्या ठीक है ?

स्वामीजीअहंकार-रहित होनपर कोई कर्म लागू नहीं होता‒‘यस्य नाहङ्कृतो भावो’ ( गीता १८ । १७) । अहंकारके रहते हुए शुभ कर्म भी बन्धनकारक होता है ।

प्रश्नकरनेमें पूरी सावधानी रखनेसे अहंकार नहीं आयेगा क्या ?

स्वामीजीअहंकार गया ही कहाँ, जो आ जायगा ? करनेमें सावधान रहनसे अहंकार मिटेगा । कर्मयोगमें अहंकार शुद्ध होता है, ज्ञानयोगमें अहंकार मिटता है और भक्तियोगमें अहंकार बदलता है‒तीनोंका परिणाम एक ही होगा कि अहंकार नहीं रहेगा ।

अहंकार आये तो ‘मैं सावधानी रखता हूँ’‒इसका भी आ जायगा ! ‘मैं त्यागी हूँ’‒इसका भी अहंकार आ जायगा !

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘सन्त समागम’ पुस्तकसे