।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
ज्येष्ठ कृष्ण द्वितीया, वि.सं.२०७३, सोमवार
तात्त्विक प्रश्नोत्तर


(गत ब्लॉगसे आगेका)

प्रश्नतैत्तिरीयमें तपसे ब्रह्मको जाननेकी बात आयी है, फिर तपसे शक्ति पैदा होती है, कल्याण नहीं होता‒इसका तात्पर्य ?

स्वामीजीतपसे तत्त्वज्ञान परम्परासे हो सकता है, साक्षात् नहीं । वेदान्तमें ज्ञानप्राप्तिके आठ अंतरंग साधन बताय हैं‒विवेक, वैराग्य, शमादि षट्‌सम्पत्ति, मुमुक्षुता, श्रवण, मनन, निदिध्यासन और तत्त्वपदार्थसंशोधन । तप अंतरंग साधन नहीं है, प्रत्युत बहिरंग साधन है ।

‘ज्ञान’ को भी तप माना गया है, जिससे तत्त्वप्राप्ति होती है–‘बहवो ज्ञानतपसा पूता मद्भावमागताः’ (गीता ४ । १०) । शरीरकी तपस्यासे तत्त्वप्राप्ति नहीं होती ।

प्रश्नवेदोंमें, शास्त्रोंमें जगह-जगह विविधता, विपरीतता दीखती है, जिससे गलत धारणा बन सकती है ?

स्वामीजीगइराईमे विचार करना चाहिये कि कहाँ क्या कहा गया है और क्यों कहा गया है । शास्त्रोंका सिद्धान्त समझना मामूली बात नहीं है । गहराईसे विचार करें तो अनेकतामें एकता और एकतामें अनेकता दीखती है । गीतामें इस शास्त्रीय जालको साधकके लिये बाधक बताया गया है‒‘श्रुतिविप्रतिपन्ना ते यदा स्थास्यति निश्चला’ (२ । ५३)

प्रश्नआपने कर्मयोग, ज्ञानयोग और भक्तियोगको स्वतन्त्र साधन भी कहा है और यह भी कहा है कि कर्मयोग और ज्ञानयोग तो साधन हैं, पर भक्तियोग साध्य है‒यह भेद किस दृष्टिसे है ?

स्वामीजीदोनों ही बातें ठीक हैं । यह साधककी इच्छापर है कि वह किसको माने । गहरा विचार करनेपर कर्मयोग और ज्ञानयोग (लौकिक निष्ठा) साधन सिद्ध होते हैं । गीता और भागवतमें भी ऐसा ही आया है ।

प्रश्नज्ञानीको शाप-वरदान लगतें हैं क्या ?

स्वामीजीशाप-वरदान अज्ञान होनपर लगते हैं । बोध हानेपर जीवन्मुक्तको शाप-वरदान नहीं लगते । जैसे, नारदजीने भगवान्‌को शाप दिया तो भगवान्‌ने कहा‒‘मम इच्छा कह दीनदयाला’ (मानस, बाल १३८ । २) । भगवान् श्रीकृष्णने उत्तंक ऋषिसे कहा कि तुम मुझे शाप दोगे तो मुझे तो शाप लगेगा नहीं, पर तुम्हारी तपस्या क्षीण हो जायगी (महाभारत, आश्व ५३ । २४‒२६) ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘सन्त समागम’ पुस्तकसे