।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
ज्येष्ठ कृष्ण षष्ठी, वि.सं.२०७३, शुक्रवार
साधकोपयोगी प्रश्नोत्तर



(गत ब्लॉगसे आगेका)

प्रश्नयदि माता-पिता बालकोंमें ममता नहीं रखेंगे तो फिर उनका सुधार कैसे कर पायेंगे ?

स्वामीजीयह बात बिलकुल गलत है । बालकमें ममता होनेमें उसमें मोह हो जाता है और मोहपूर्वक पालन करनेसे न बालकका हित (सुधार) होता है, न अपना, प्रत्युत मोह ही बढ़ता है । मोहसे आसुरी सम्पत्ति बढ़ती है ।

एक बालक माँके पास रहता है, एक बालक पिताके पास रहता है, एक बालक अध्यापकके पास रहता हैं और एक बालक महात्माके पास रहता है । विचारपूर्वक देखें तो महात्माके पास रहनेवाला बालक जितना सुधरेगा, उतना अध्यापकके पास रहनेवाला नहीं । अध्यापकके पास रहनेवाला बालक जितना सुधरेगा, उतना पिताके पास रहनेवाला नहीं । पिताके पास रहनेवाला बालक जितना सुधरेगा, उतना माँके पास रहनेवाला नहीं । कारण यह है कि माँमें मोह ज्यादा होता है, माँकी अपेक्षा पितामें मोह कम होता है, पिताकी अपेक्षा अध्यापकमें मोह कम होता है और महात्मामें मोह होता ही नहीं । अतः ममता रखकर पालन करनेसे बालकका सुधार होता है‒यह बात बिलकुल झूठी है ।

जो वैद्य या डॉक्टर सब लोगोंका इलाज करते हैं, वे अपने स्त्री-बच्चोंका इलाज करनेक लिये दूसरे वैद्य या डॉक्टरको बुलाते हैं । कारण कि अपने स्त्री-बच्चोंमें मोह-ममता ज्यादा होनेसे वे खुद उनका इलाज नहीं कर सकते । जहाँ मोह-ममता ज्यादा होती है, वहाँ बुद्धिका विकास कम होता है । अतः दूसरे वैद्य औषधि, पथ्य आदिका जितना विचार कर सकत हैं, उतना विचार ममतावाले नहीं कर सकते । तात्पर्य है कि ममतारहित वैद्य-डॉक्टर ही अपन स्त्री-बच्चोंका इलाज कर सकत हैं ।

धृतराष्ट्रकी दुर्योधनमें बहुत ममता थी । महात्मा विदुरजीने धृतराष्ट्रको बहुत समझाया, पर ममताके कारण वे दुर्योधनका सुधार नहीं कर सके, जिससे कुलका ही विनाश हो गया । तात्पय है कि ममतासे पतन ही होता है, सुधार नहीं ।

प्रश्नगृहस्थमें रहते हुए अहंता-ममताका त्याग कैसे होगा ?

स्वामीजीअहंता-ममता न छुटनमें गृहस्थ या साधु अथवा घर या संन्यास कारण नहीं है । बन्धन भीतरके भावसे, नीयतसे होता है । कुटुम्बके साथ सम्बन्ध होनेसे गृहस्थका व्यवहार ज्यादा होता है और निवृत्तिपूर्वक साधु बननेसे व्यवहार कम होता है‒इस प्रकार व्यवहारमें तो फर्क पड़ता है, पर मुक्तिमें कोई फर्क नहीं पड़ता । अपने सुखकी इच्छा छोड़नेसे ममता छूट जाती है । जैसे, माँ बालकका पालन करनेके लिये ही बालकको अपना माने, परिवारमें एक-दूसरेकी सेवा करनेके लिये ही परिवारको अपना माने तो ममता छूट जायगी । अगर माँ बालकसे सुखकी आशा रखे कि यह बड़ा होगा तो इसका विवाह करूँगी, बहू आयेगी, फिर दोनों मेरी सेवा करेंगे आदि, तो उसकी ममता नहीं छूटेगी । ऐसे ही परिवारसे अपनी सुख-सुविधाकी इच्छा रखें तो ममता नहीं छूटेगी ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘सन्त समागम’ पुस्तकसे