।। श्रीहरिः ।।



आजकी शुभ तिथि
वैशाख कृष्ण एकादशी, वि.सं.२०७३, मंगलवार
वरूथिनी एकादशी-व्रत (सबका), श्रीवल्लभाचार्य-जयन्ती
त्यागसे कल्याण
  



भगवान्‌ बिना हेतु स्नेह करनेवाले अर्थात् स्वाभाविक ही कृपा करनेवाले हैं । वे भगवान्‌ विशेष कृपा करके जीवको अपना उद्धार करनेके लिये मानवशरीर देते हैं‒‘कबहुँक करि करुना नर देही । देत ईस बिनु हेतु सनेही ॥’ (मानस, उत्तर ४४ । ३) । जीव अपना उद्धार कैसे करे ? जैसे जलाशयमें पड़ा हुआ कोई व्यक्ति अपना उद्धार करना चाहे तो वह जलको अपने हाथोंसे और लातोंसे मारता चला जाय । ऐसा करनेसे वह तर जायगा । परन्तु वह ऐसा न करके जलको हाथोंसे लेने लगे तो वह निश्चित ही डूब जायगा । ठीक यही बात संसार-समुद्रमें पड़े हुए जीवपर भी लागू होती है । अगर वह संसारका त्याग करने लगे तो वह तर जायगा, उसका उद्धार हो जायगा । परन्तु वह संसारसे लेना शुरू कर दे तो वह डूब जायगा ।

जो संसारसे अपना उद्धार चाहता है, उसको यह अवश्य ही मान लेना चाहिये कि हमारेको जो कुछ मिला है, जो वस्तु, योग्यता और बल मिला है, वह सब-का-सब केवल सेवा करनेके लिये मिला है । कारण कि जो मिला है, वह अपना नहीं है । अगर कारणकी दृष्टिसे देखें तो वह प्रकृतिका है, कार्यकी दृष्टिसे देखें तो वह संसारका है और मालिककी दृष्टिसे देखें तो वह भगवान्‌का है । वह अपना नहीं है‒यह सच्ची बात है । जो मिला है, वह अपना उद्धार करनेके लिये मिला है । उद्धार तब होगा, जब हम मिले हुएको अपना न मानें, उससे सुख न लें । तात्पर्य है कि जो मिला है, वह केवल त्याग करनेके लिये अर्थात् दूसरोंकी सेवामें लगानेके लिये ही मिला है और ऐसा करनेसे ही हमारा कल्याण होगा ।

बाहरसे वस्तुका त्याग करनेसे कल्याण नहीं होता । कल्याण भीतरके भावसे होता है अर्थात् भीतरसे वस्तुओंका त्याग करनेसे, उनके साथ अपना सम्बन्ध न माननेसे कल्याण होता है । जड़ वस्तुओंका सम्बन्ध ही पतन करता है और उनसे सम्बन्ध-विच्छेद ही उद्धार करता है । स्वयं चेतन होते हुए भी जीवने जड़को सत्ता और महत्ता देकर उसके साथ सम्बन्ध जोड़ लिया‒यही बन्धन है । इसने जड़ शरीरको सत्ता दे दी कि ‘शरीर है’, उसको महत्ता दे दी कि ‘शरीरके बिना सुख नहीं मिल सकता’ और उसके साथ सम्बन्ध जोड़ लिया कि ‘मैं शरीर हूँ, शरीर मेरा है और मेरे लिये है’ हमारेको जो कुछ मिला है, वह सब बिछुड़नेवाला ही मिला है । शरीर मिला है तो बिछुड़नेवाला मिला है, कुटुम्ब मिला है तो बिछुड़नेवाला मिला है, धन मिला है तो बिछुड़नेवाला मिला है, योग्यता मिली है तो बिछुड़नेवाली मिली है, बल मिला है तो बिछुड़नेवाला मिला है ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘सत्यकी खोज’ पुस्तकसे