।। श्रीहरिः ।।



आजकी शुभ तिथि
वैशाख कृष्ण द्वादशी, वि.सं.२०७३, बुधवार
त्यागसे कल्याण
  



(गत ब्लॉगसे आगेका)
बिछुड़नेवाली वस्तुका त्याग कर दें तो स्वतः कल्याण होता है‒यह भगवान्‌की बड़ी विलक्षण कृपा है ! भगवान्‌ मिले हुए और बिछुड़नेवाले नहीं हैं, प्रत्युत सदासे ही मिले हुए हैं, सदा मिले हुए ही रहते हैं, कभी बिछुड़ते नहीं । भगवान्‌के सिवाय जो कुछ है, वह सब-का-सब बिछुड़नेवाला है‒

आब्रह्मभुवनाल्लोका पुनरावर्तिनोऽर्जुन ।
मामुपेत्य तु कौन्तेय पुनर्जन्म न विद्यते ॥
                                       (गीता ८ । १६)

‘हे अर्जुन ! ब्रह्मलोकतक सभी लोक पुनरावर्तीवाले हैं अर्थात् वहाँ जानेपर पुनः लौटकर संसारमें आना पड़ता है; परन्तु हे कौन्तेय ! मुझे प्राप्त होनेपर पुनर्जन्म नहीं होता ।’

मनुष्यशरीर केवल त्याग करनेके लिये ही मिला है । त्याग करनेसे अपने घरका कुछ भी खर्च नहीं होगा और कल्याण मुफ्तमें हो जायगा ! अतः मिली हुई वस्तुका हृदयसे त्याग कर दें कि यह हमारी नहीं है और हमारे लिये भी नहीं है तो कल्याण हो जायगा‒यह पक्का सिद्धान्त है । त्यागसे तत्काल शान्ति मिलती है‒‘त्यागाच्छान्तिरनन्तरम्’ (गीता १२ । १२); क्योंकि शरीर, योग्यता, बल, बुद्धि आदि जो कुछ मिला है, त्याग करनेके लिये ही मिला है । त्याग नहीं करेंगे तो भी वे बिछुडेंगे ही । साथमें रहनेवाली कोई भी चीज नहीं है ।

दान-पुण्य करते हैं तो लोग समझते हैं कि रुपयोंसे कल्याण होता है । वास्तवमें रुपयोंसे कल्याण नहीं होता, प्रत्युत रुपयोंमें जो मोह है, उसके त्यागसे कल्याण होता है । अगर बाहरसे रुपयोंका त्याग करनेसे ही कल्याण होता तो धनी आदमी कल्याण कर लेते और गरीबोंका कल्याण होता ही नहीं ।

एक मार्मिक बात है । संसार सत् है या असत्‌, नित्य है या अनित्य‒इस विषयमें बड़ा मतभेद है । परन्तु संसारका सम्बन्ध असत् है, अनित्य है‒इस विषयमें कोई मतभेद नहीं है । जड़-चेतनका सम्बन्ध असत् है; क्योंकि जड़-चेतनका सम्बन्ध हो ही नहीं सकता । अतः संसारसे माने हुए सम्बन्धका ही त्याग करना है । असत् अपना नहीं है‒यही असत्‌का त्याग है । असत्‌के त्यागसे सत्-तत्त्व परमात्माकी प्राप्ति स्वतः हो जायगी । शरीर बिछुड़ जायगा तो मौत हो जायगी, पर उसके सम्बन्धका त्याग कर दें तो मौज हो जायगी ! छूटनेवालेको हम अपनी मरजीसे छोड़ दें तो आनन्द हो जायगा, पर वह जबर्दस्ती छूटेगा तो रोना पड़ेगा ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘सत्यकी खोज’ पुस्तकसे