।। श्रीहरिः ।।



आजकी शुभ तिथि
ज्येष्ठ शुक्ल षष्ठी, वि.सं.२०७३, शुक्रवार
छूटनेवालेको ही छोड़ना है



(गत ब्लॉगसे आगेका)

संसारके संयोगको आदर देते हो और परमात्माके वियोगको आदर देते हो‒ये दो बहुत बड़ी गलतियाँ है । इन दोनों गलतियोंको आज मिटा दो अपने मनसे । फिर दीखे तो कोई परवाह नहीं । संयोगका प्रभाव दीखे, न दीखे । संसारके वियोगका प्रभाव दीखे, न दीखे । प्रभावकी तरफ आप मत देखो । प्रभाव न दीखे तो अपने निर्णयमें ढिलाई मत लाओ । बिलकुल सच्ची बात यही है । उसके सच्चेपनमें कोई सन्देह हो तो तर्क करो, विचार करो, पूछो, पुस्तकें पढ़ों, सन्देह आने मत दो । वह सन्देह जितना हो, तर्कसे दूर कर दो । परमात्माका नित्य-निरन्तर हमारा सम्बन्ध है और संसारका सम्बन्ध नित्य-निरन्तर हमारेसे मिट रहा है । इसमें कोई सन्देह हो तो तर्कसे दूर कर दो । परमात्माका नित्य-निरन्तर हमारा सम्बन्ध है और संसारका सम्बन्ध नित्य-निरन्तर हमारेसे मिट रहा है । इसमें कोई सन्देह हो तो तर्कसे चाहे जितनी करो । चाहे जितनी आप शंका करो; परन्तु उस निर्णयमें आप शंका मत करो । निर्णय कर लेनेके बाद अब सन्देह मत करो ।

लड़का-लड़कीके सम्बन्धके लिये सगाई नहीं हुई, तबतक कई लड़के कई लड़कियाँ देखते है । सम्बन्ध होनेके बाद देखते ही नहीं । अब तो हो गयी, हो गयी, हो ही गयी सगाई । इसमें सन्देह मत करो । इसी तरहसे हमारा भगवान्‌के साथ सम्बन्ध था, है और रहेगा । कभी दूर हो नहीं सकता, सच्ची बात है और संसारका सम्बन्ध हमारा नहीं था, नहीं है, नहीं होगा और नहीं रहेगा । ये चारों बातें याद कर लो । पहले संसारसे सम्बन्ध नहीं था और अगाड़ी संसारका सम्बन्ध नहीं रहेगा । अभी भी संसारका सम्बन्ध वियुक्त हो रहा है और संसारका सम्बन्ध रह सकता नहीं‒ये चार बातें है । पहले था नहीं, पीछे रहेगा नहीं और अभी भी है नहीं । और इसका सम्बन्ध रह सकता नहीं, रहता ही नहीं, असम्भव बात है ।

परमात्माका वियोग पहले हुआ नहीं, अभी है नहीं, अगाड़ी वियोग होगा नहीं और वियोग हो सकता नहीं । भगवान्‌की ताकत नहीं कि आपसे अलग हो जायँ । इतना अकाट्‌य सम्बन्ध है; इसमें जितनी शंका करनी हो, करो । यह आपका पक्का निर्णय है तो इस निर्णयके ऊपर आप दृढ़ रहो । चाहे कितना ही वियोग हो जाय, चाहे कितनी ही वृत्तियाँ खराब हो जायँ, कितना ही पतन हो जाय, इस निर्णयके ऊपर पक्के दृढ़ रहो । वह जितना पक्का रहेगा, उतनी बहुत जल्दी सिद्धि हो जायगी इसमें किंचिन्मात्र सन्देह नहीं है । इस निर्णयपर दृढ़ रहना है । नहीं तो भाई ! दिन लगेगा । आप लक्षण देख करके निर्णयमें ढिलाई लाते हो, यह गलती होती है । हमारे देखनेमें नहीं आता । आचरणमें नहीं आता । यह भाव हमारे बर्तावमें नहीं आता, यह बिलकुल गलत बात है और आ जाय तो कोई बात नहीं । यह बात तो सही है, इसमें आप कच्चे मत पड़ो । इतनी बात मेरी मान लो, बात सही तो सही ही है । दो और दो चार ही होते है, तीन और पाँच हो ही नहीं सकते । इसमें क्या सन्देह बताओ ?

नारायण !     नारायण !!     नारायण !!!

‒‘भगवत्प्राप्ति सहज है’ पुस्तकसे