।। श्रीहरिः ।।



आजकी शुभ तिथि
ज्येष्ठ शुक्ल नवमी, वि.सं.२०७३, मंगलवार
श्रीगंगादशहरा
स्वाभाविकता क्या है ?



(गत ब्लॉगसे आगेका)

स्वाभाविकताको पहचान करके उसमें स्थित हो जाओ और व्यवहार ठीक तरहसे मर्यादामें करो । ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र कुलमें जन्म हुआ है तो जन्मके अनुसार ब्याह ठीक मर्यादामें करो । मर्यादाका पालन करो अच्छी तरहसे । जैसे खेलमें स्वाँग लेते हैं, मर्यादाका ठीक तरहसे पालन करते है । वैसे ही कोई ब्राह्मण बना है, कोई क्षत्रिय बना है, कोई वैश्य बना है, कोई शूद्र बना है । बाप मेहतर बन गया, बेटा राजा बन गया खेलमें । वहाँपर बेटा उसको बाप कहे तो गलती हो जायगी न ! खेल बिगड़ जायगा । इस वास्ते स्वाँगमें तो मेहतर ही कहो । ‘ओ, वहाँ जाओ, वहाँ जाओ !’ कि अन्नदाता ! ठीक है, जाता हूँ, स्वाँग तो बिगाड़ना नहीं है, पर कृत्रिमतामें फँसना भी नहीं है ।

यह रुपया मेरा है, यह कुटुम्ब मेरा है, यह शरीर मेरा है । कितने दिनोंसे ? यह ज्यादा हो गया तो हम बड़े आदमी हो गये, रुपये थोड़े है तो हम छोटे हो गये । यह बड़ी पार्टी है, यह छोटी पार्टी है । अभिमान अपनेमें करने लग गये । भाई ! व्यवहार करो । छोटी पार्टीका, बड़ी पार्टीका व्यवहार करो । बड़ी पार्टी वही है, जो दूजेको बड़ा बनावे । दूजेको जो छोटा बनावे, वह बड़ी पार्टी कैसे हुई ? वह तो छोटी पार्टी हुई न ! और छोटी पार्टी दूजोंको बड़ी पार्टी बनावे तो बड़ी पार्टी तो छोटी हुई और छोटी पार्टी बड़ी हुई; क्योंकि बड़ी पार्टीको बड़प्पन छोटीने दिया । छोटेके बिना ही वह बड़ा कैसे हो गया ? इस वास्ते छोटी पार्टी तो बड़ी पार्टीकी जनक है । छोटी पार्टी तो बाप है और बड़ी पार्टी बेटा है; क्योंकि वह छोटी पार्टीका बड़ा बनाया हुआ है ।

धनवत्ता निर्धनोंके द्वारा होती है या कि धनियोंके द्वारा होती है ? एक गाँवमें सब साधारण आदमी और एक लखपती हो तो वह बहुत धनी माना जाता है और जिस शहरमें सब करोड़पति हों उसमें क्या इज्जत है उसकी ? लाख रुपया होनेसे इज्जत है अथवा दूसरे लखपति नहीं होनेसे इज्जत है ? बनावटी चीजको भाई ! बनावटी मानो । असलीको असली मानो । मूलमें असली परमात्माका अंश है, यह वास्तविकता है और यह संसार सब उत्पत्ति-विनाशशील है । यह कोई वास्तवमें स्थिर नहीं है । जो स्थिर नहीं है, उसको तो स्थिर मानते है कि वे स्थिर रहेंगे और वास्तवमें जो स्थिर है, उस तरफ ख्याल ही नहीं करते । स्वाभाविकता क्या है कि ‘अपनापन परमात्माके साथ है’ और संसारके साथ अपनापन, मैं और मेरापन अस्वाभाविक है ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘भगवत्प्राप्ति सहज है’ पुस्तकसे