।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी, वि.सं.२०७३, गुरुवार
भीमसेनी-निर्जला एकादशी-व्रत (सबका)
स्वाभाविकता क्या है ?



(गत ब्लॉगसे आगेका)

प्रश्न‒संयोगकालमें वियोगको स्वीकार करना भी तो अभ्यास है ?

उत्तर‒ना ! अभ्यास नहीं है, बिलकुल नहीं है । संयोगकालमें वियोगकाल स्वीकार करना है, स्वीकार करना अभ्यास नहीं होता । अभ्याससे भूल नहीं मिटती, भूलको को भूल समझा कि मिट जायगी । उसके लिये अभ्यास नहीं करना पड़ेगा । किसी आदमीको नहीं पहचाना तो पूछते है कि ‘भाई ! कौन है ? हम जानते नहीं ।’ कहता है ‘अमुक हूँ, अमुक हूँ ।’ ‘अच्छा, अब पहचान लिया ।’ इसमें अभ्यास करना पड़ा क्या ?

छोरी, कन्याकी सगाई करते हो तो अभ्यास करते हो क्या कि मैंने छोरी दी या छोरी अभ्यास करती है ? एक माला भी जपती है कि ‘हमारी सगाई हो गयी, हमारी सगाई हो गयी ।’ अच्छा, आप ब्याहे हुए इतने बैठे हो, ब्याहकी एक माला भी फेरी है क्या ? अभ्यास किया है क्या ? बोलो । अभ्यासकी साधना दूजी होती है । स्वीकृति अस्वीकृतिकी साधना दूजी होती है । स्वीकृति होती है, वह तत्काल होती है, सदा रहती है । अभ्यास किया हुआ बिगड़ जाता है । अब उसको अभ्यासजन्य मान लिया आपने । इस वास्ते कभी होता है और कभी नहीं होता है । मूलमें गलती हो गयी । थोड़ा सोचो ! गहरा विचार करो, यह साधु हो गया तो उसने अभ्यास किया क्या साधु होनेका ? बताओ ! अब मानने लग गये कि हमारे गुरुजी है तो गुरुजी माननेके लिये अभ्यास किया क्या ? यह साधना और है अभ्यासकी साधना दूजी है । और बोधकी साधना, ज्ञानकी साधना दूजी है । दोनों साधना अलग-अलग है, पर यह मानते ही नहीं ।

यह जो मेरी बातें आपको अच्छी लगती है, उनमें क्या बात है ? कि मैं वास्तविकताकी बात बताता हूँ, जो स्वीकार करनेमात्रसे हो जाय । यह सुगमता आपको अच्छी तो लगती है, पर आपके मनमें यह जँची हुई है कि अभ्यास करनेसे ही होगा, ऐसे नहीं होगा । अब आपने यह पकड़ लिया, हम क्या करें ? अभ्यास होनेसे दूजी अवस्था बनती है । ध्यान देना एक मार्मिक बात है ।

अभ्यास करो जो तो दूजी अवस्था बनेगी, अवस्था छोटी-बड़ी भले ही हो, पर बोध नहीं होगा । अभ्याससे बोध हुआ ही नहीं, कभी होगा ही नहीं । बोध हो सकता ही नहीं कभी । अभ्यास करते-करते अन्तमें वास्तविकताको स्वीकार करनेसे ही बोध होगा और स्वीकार करोगे तभी संसारका सम्बन्ध-विच्छेद होगा, अभ्याससे नहीं होगा ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘भगवत्प्राप्ति सहज है’ पुस्तकसे