।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
ज्येष्ठ शुक्ल चतुर्दशी, वि.सं.२०७३, रविवार
व्रत-पूर्णिमा
कर्म अपने लिये नहीं



॥ श्रीहरिः ॥

८-४-८३                                                                                            भीनासर धोरा
बीकानेर
राम राम राम............

भगवान्‌ने कृपा करके मानव-शरीर दिया है । इसका अर्थ यह हुआ कि केवल भगवत्प्राप्तिके लिये ही मनुष्य-शरीरकी रचना की गयी है । इस मनुष्य-शरीरमें आकर अपने लिये कर्म ये न करे, अपने लिये यह करता है तो उसका इसको पाप और पुण्य दोनों लगते हैं । ठीक काम करता है तो पुण्य लगता है और शास्त्र-निषिद्ध करता है तो पाप लगता है । इन दोनोंसे बचें कैसे ? अपने लिये न करें तथा औरोंके लिये करें; क्योंकि यह मनुष्य-शरीर सम्पूर्ण संसारकी सेवा करनेके लिये है । भगवान्‌ने इसको बड़ा अधिकार दिया है कि मात्र जीव-जन्तुकी यह सेवा करे, मनुष्योंकी यह सेवा करे, ऋषि-मुनियोंकी यह सेवा करे, पितरोंकी यह सेवा करे, देवताओंकी यह सेवा करे और तो क्या भगवान्‌की भी सेवा करे । भगवान् भी इससे चाहते हैं ।

आप थोड़ा ध्यान दें । भगवान्‌के इतनी भूख है जो अर्जुनको चुपके-से कहते है‒‘सर्वगुह्यतमं भूयः ।’ बहुत गोपनीय बात कहता हूँ । जैसे, कोई कानमें बात कहे, ऐसे कहते है । मेरे ये परमवचन है । क्या है महाराज वो ? कि ‘सर्वगुह्यतम है । सुन, तू प्रेम रखता है इस वास्ते कहता हूँ ।’ ‘मन्मना भव मद्‌भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु ।’ (गीता १८ । ६५)  बस मेरे ही अर्पण कर, मेरी सेवा कर, सब धर्मोंको छोड़कर मेरे शरण आ जा । इस जीवकी गरज भगवान्‌को भी है कि ये सेवा करे, मेरी तरफ ही आ जाय । तो सबकी सेवा करनेलायक भगवान्‌ने इस मनुष्यको बनाया । अपनी खुदकी भी गरज पूरी करनेके लिये भगवान्‌ने मनुष्यको बनाया । तू मेरी ही सेवा कर, मेरी ही शरण आ जा । तू जो खुद चाहता है, गलती करता है, दरिद्रता करता है, महान् पतनकी तरफ जा रहा है । तू मेरी ही सेवा कर । तेरे जो चिन्ता-फिकर है, वह सब मैं दूर कर दूँगा । तेरी कमीकी चिन्ता तू क्यों करता है ? सब चिन्ता मैं दूर कर दूँगा । सब पापोंसे मैं मुक्त कर दूँगा । तू केवल मेरी शरण आ जा । मनुष्यमात्र जीवकी सेवा कर सकता है और साक्षात् भगवान्‌की सेवा, जो भगवान्‌की कमी भी पूरी कर दे । जिनमें कमी कोई नहीं है, किंचिन्मात्र भी कमी नहीं है‒ऐसे भगवान्‌की भी पूर्ति यह कर सकता है । ऐसा मनुष्य-शरीर दिया है । अब ये केवल अपने स्वार्थका त्याग करके अपने लिये न करके सब दुनियाके हितके लिये ही काम करने लग जाय । केवल अपना स्वार्थ त्याग कर दे तो इसका कल्याण हो जाय । इसके लिये कुछ नहीं करना है । केवल दूसरोंकी सेवाके लिये काम करें बस । अपने लिये कुछ नहीं करना है । तो कल्याण इसका स्वतः हो जाय, स्वाभाविक हो जाय । ऐसी बात दीखती है ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘भगवत्प्राप्ति सहज है’ पुस्तकसे