।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
आषाढ़ कृष्ण प्रतिपदा, वि.सं.२०७३, मंगलवार
कर्म अपने लिये नहीं



(गत ब्लॉगसे आगेका)

और दूसरोंके हितके लिये ही काम करेंगे, तो ये आदि-अन्तवाला नहीं रहेगा, हमारे लिये आदि-अन्त है ही नहीं, क्योंकि हम तो निरन्तर करते हैं, दूसरोंके लिये ही करते हैं । उसमें भी करनेकी क्रियाका आदि और अन्त तो होगा । आदि और अन्त तो होगा ही, दूसरोंके लिये करनेमें भी; परन्तु ‘सर्वभूतहिते रताः’ प्राणिमात्रके हितमें जो रति है उसका आदि और अन्त नहीं होता है । क्रिया कुछ भी करो, उसका आदि और अन्त होगा, पर केवल दूसरोंके हितकी भावना है उसका क्या आदि और अन्त होगा, बताओ । अनन्त होगा इसका फल ! कल्याण होगा । इतनी विलक्षण बात है !

सहजं कर्म कौन्तेय  सदोषमपि  न त्यजेत् ।
सर्वारम्भा हि दोषेण धूमेनाग्निरिवावृताः ॥
                                            (गीता १८ । ४८)

कर्तुं नेच्छसि यन्मोहात्करिष्यस्यवशोऽपि तत् ।
                                                  (गीता १८ । ६०)

यतः  प्रवृत्तिर्भूतानां    येन   सर्वमिदं   ततम् ।
स्वकर्मणा तमभ्यर्च्य सिद्धिं विन्दति मानवः ॥
                                               (गीता १८ । ४६)

केवल अपने कर्मोंसे पूजन करना है भगवान्‌का । सबकी सेवा करनी है, हमारे लिये कुछ नहीं करना है । तो इसके लिये कुछ भी करनेकी जरूरत नहीं है । इससे इसका कल्याण हो जायगा । इसमें एक मार्मिक बात है, आप ध्यान दें, गहरी बात है‒यह स्वयं भगवान्‌का अंश है और भगवान् है सच्चिदानन्द, सत्-चित्-आनन्द स्वरूप । ‘ईस्वर अल जीव अबिनासी । चेतन अमल सहज सुख ससी ॥’ ध्यान देना उस चेतनका अंश है ये । यह चेतन है, शुद्ध है, सहज सुखराशि है । इसके लिये कुछ भी करनेकी जरूरत नहीं है । फिर सुनो‒‘ईस्वर अंस जीव अबिनासी । चेतन अमल सहज सुख रासी ॥’ तो करना क्या रहा इसके बाकी ! सहज सुखराशि है । करनेमें जितना ये प्राप्त करना चाहेगा कि मैं प्राप्त कर लूँगा तो वह आदि और अन्तवाला होगा और जन्म-मरण देनेवाला होगा । शुभ हो चाहे अशुभ हो, कोई काम हो । यह चेतन अमल सहज सुख राशि है और सत् स्वरूप है, उसमें कोई क्रिया नहीं है । स्वतःसिद्ध है, शान्तस्वरूप । इसके लिये करना है ही नहीं । करनेकी उसपर जिम्मेवारी नहीं है । करनेकी जिम्मेवारी दो-पर रहती है, एक तो वह जो कुछ कर सकता है तो करनेकी जिम्मवारी होती है । एक जिनके कुछ चाहिये तो जिम्मेवारी रहती है ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘भगवत्प्राप्ति सहज है’ पुस्तकसे