।। श्रीहरिः ।।



आजकी शुभ तिथि
आषाढ़ कृष्ण नवमी, वि.सं.२०७३, बुधवार एकादशी-व्रत कल है
जाति जन्मसे मानी जाय या कर्मसे ?






(गत ब्लॉगसे आगेका)

जन्म तो पूर्वकर्मोंके अनुसार हुआ है ।[1] इसमें वह बेचारा क्या कर सकता है ? परन्तु वहीं (नीच वर्णमें) रहकर भी वह अपनी नयी उन्नति कर सकता है । उस नयी उन्नतिमें प्रोत्साहित करनेके लिये ही शास्त्र-वचनोंका आशय मालूम देता है कि नीच वर्णवाला भी नयी उन्नति करनेमें हिम्मत न हारे । जो ऊँचे वर्णवाला होकर भी वर्णोचित काम नहीं करता, उसको भी अपने वर्णोचित काम करनेके लिये शास्त्रोंमें प्रोत्साहित किया है; जैसे‒

ब्राह्मणस्य हि देहोऽयं क्षुद्रकामाय नेष्यते ।
                                                           (श्रीमद्भा ११ । १७ । ४२)
 
जिन ब्राह्मणोंका खान-पान, आचरण सर्वथा भ्रष्ट है, उन ब्राह्मणोंका वचनमात्रसे भी आदर नहीं करना चाहिये‒ऐसा स्मृतिमें आया है (मनु ४ । ३०, १९२) । परन्तु जिनके आचरण श्रेष्ठ हैं, जो भगवान्‌के भक्त हैं, उन ब्राह्मणोंकी भागवत आदि पुराणोंमें और महाभारत, रामायण आदि इतिहास-कथोंमें बहुत महिमा गायी गयी है ।

भगवान्‌का भक्त चाहे कितनी ही नीची जातिका क्यों न हो, वह भक्तिहीन विद्वान् ब्राह्मणसे श्रेष्ठ है ।[2]

  (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘कर्म-रहस्य’ पुस्तकसे


[1] सति मूले तद्विपाको जात्यायुर्भोगाः ।
                                                         (योगदर्शन २-१३)

[2] १.अहो बत श्वपचोऽतो गरीयान् यज्जिह्वाग्रे वर्तते नाम तुभ्यम् ।
       तेपुस्तपस्ते जुहुवुः   सस्नुरार्या    ब्रह्मानूचुर्नाम गृणन्ति ये ते ॥
                                                       (श्रीमद्भा ३ । ३३ । ७)

अहो ! वह चाण्डाल भी सर्वश्रेष्ठ है, जिसकी जीभके अग्रभागपर आपका नाम विराजता है । जो श्रेष्ठ पुरुष आपका नाम उच्चारण करते हैं, उन्होंने तप, हवन, तीर्थस्नान, सदाचारका पालन और वेदाध्ययन‒सब कुछ कर लिया ।’

२. विप्राद् द्विषड्‌गुणयुतादरविन्दनाभपादारविन्दविमुखाच्छ्‌वपचं     वरिष्ठम् ।
मन्ये तदर्पितमनोवचनेहितार्थप्राण पुनाति स कुलं न तु भूरिमानः ॥                              
                                                      (श्रीमद्भा ७ । १ । १०)

‘मेरी समझसे बारह गुणोंसे युक्त ब्राह्मण भी यदि भगवान् कमलनाभके चरण-कमलोंसे विमुख हो तो वह चाण्डाल श्रेष्ठ है, जिसने अपने मन, वचन, कर्म, धन और प्राणोंको भगवान्‌के अर्पण कर दिया है; क्योंकि वह चाण्डाल तो अपने कुलतकको पवित्र कर देता है; परन्तु बड़प्पनका अभिमान रखनेवाला भगवद्विमुख ब्राह्मण अपनेको भी पवित्र नहीं कर सकता ।’

३. चाण्डालोऽपि मुनेः श्रेष्ठो विष्णुभक्तिपरायणः ।
    विष्णुभक्तिविहीनस्तु द्विजोऽपि श्वपचोऽधमः ॥
                                                     (पद्मपुराण)

‘हरिभक्तिमें लीन रहनेवाला चाण्डाल भी मुनिसे श्रेष्ठ है और हरिभक्तिसे रहित ब्राह्मण चाण्डालसे भी अधम है ।’

४. अवैष्णवाद् द्विजाद् विप्र चाण्डालो वैष्णवो वरः ।
    सगणः  श्वपचो   मुक्तो   ब्राह्मणो  नरकं   व्रजेत् ॥
                                  (ब्रह्मवैवर्त, ब्रह्मा ११ । ३९)

‘अवैष्णव ब्राह्मणसे वैष्णव चाण्डाल श्रेष्ठ है; क्योंकि वह वैष्णव चाण्डाल अपने बन्धुगणोंसहित भव-बन्धनसे मुक्त हो जाता है और वह अवैष्णव ब्राह्मण नरकमें पड़ता है ।’

५. न शूद्रा भगवद्भक्ता विप्रा भागवताः स्मृताः ।
    सर्ववर्णेषु  ते  शूद्रा   ये   ह्यभक्ता   जनार्दने ॥
                                               (महाभारत)

‘यदि भगवद्भक्त शूद्र है तो वह शूद्र नहीं, परमश्रेष्ठ ब्राह्मण है । वास्तवमें सभी वर्णोंमें शूद्र वह है, जो भगवान्‌की भक्तिसे रहित है ।’