।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
ज्येष्ठ कृष्ण त्रयोदशी, वि.सं.२०७३, शुक्रवार
कल्याणकारी प्रश्नोत्तर



प्रश्नत्याग करनेका उपाय क्या है ?

स्वामीजीत्याग करनेका उपाय है‒दूसरोंकी सेवा करें, उनको सुख पहुँचायें, पर बदलेमें उनसे कुछ भी न चाहें । सुख आ जाय तो भगवान्‌को पुकारें कि हे नाथ, बचाओ !

अगर हम माँ-बापसे भी सुख चाहते हैं, बहन-भाईसे भी सुख चाहते हैं, स्त्री-पुत्रसे भी सुख चाहते हैं तो बन्धन कभी मिटेगा नहीं । हम कितना ही पढ़ लें, कितने ही बड़े पण्डित बन जायँ, कितने ही बड़े व्याख्यानदाता बन जायँ, कितने ही बड़े लेखक बन जायँ, पर जबतक हम दूसरोंसे सुख चाहते रहेंगे, तबतक तत्वज्ञान नहीं होगा । हम साधु हो गये, पर दूसरोंसे सुख चाहते हैं, आराम चाहते हैं, मान-बड़ाई-आदर चाहते हैं, रोटी-कपड़ा चाहते हैं, मकान चाहते हैं, पुस्तक चाहते हैं, गाड़ीका किराया चाहते हैं तो मुक्तिसे हाथ धोनेके सिवाय कुछ मिलेगा नहीं । कोई कहे कि रोटी नहीं मिलेगी तो मर जायँगे । क्या रोटी खाते-खाते नहीं मरेंगे ? मरना तो है ही, नयी बात क्या हो गयी ? दृढ़ता इतनी होनी चाहिये कि मर भले ही जायँ, पर संसारकी गुलामी स्वीकार नहीं करेंगे । मरनेमें लाभ ही होगा, पर अहंकारके रहते जीनेमें लाभ नहीं होगा । जबतक अहंकार है, तबतक जीना-मरना चलता रहेगा । संसारकी गुलामी करते हुए जीयेंगे तो चिज्जड़ग्रन्थि ज्यों-की-त्यों बनी रहेगी । सच्ची बात तो यह है कि जिस दिन हमारा मरना लिखा है, उसी दिन मरेंगे । उससे एक क्षण भी पहले नहीं मर सकते और न कोई मार ही सकता है !

प्रश्नसंसारकी कामना होनेमें क्या कारण है ?

स्वामीजी‒इसमें कारण है‒असत् (नाशवान् पदार्थों)-की सत्ता और महत्ता । हम ही असत्‌का सत्ता देते हैं और सत्ता देकर उसमें महत्त्वबुद्धि कर लेते हैं । यह महत्त्वबुद्धि ही हमारे लिये खास बाधक है । हमने शरीर-इन्द्रियाँ-मन-बुद्धिको महत्ता दे दी, भोगोंका महत्ता दे दी, मान-आदरको महत्ता दे दी, आरामका महत्ता दे दी, रुपयाको महत्ता दे दी और इस प्रकार खुद ही उसमें फँस गये ।

प्रश्नअसत्‌की सत्ता और महत्ता मिटानेका उपाय क्या है ?

स्वामीजीतीन उपाय हैं‒योगमार्ग, विवेकमार्ग और विश्वासमार्ग । निष्कामभावपूर्वक दूसरोंकी सेवा करना, उनको सुख पहुँचाना ‘योगमार्ग’ (कर्मयोग) है । अपने विवेकको महत्त्व देना ‘विवेकमार्ग’ (ज्ञानयोग) है और भगवान्, शास्त्र, गुरु और सन्तोंपर तथा उनके वचनोंपर विश्वास करना ‘विश्वासमार्ग’ (भक्तियोग) है । सबसे सरल उपाय है‒असत्‌की सत्ता और महत्ता सही न जाय । उत्कट अभिलाषामें जो ताकत है, वह किसी साधनमें नहीं है । असली भूख होनपर जो भोजन मिलता है, उससे ताकत मिलती है, परन्तु बिना भूखके बढ़िया-से-बढ़िया माल खा ले तो उलटे हानि करेगा, पेट खराब हो जायगा ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘सन्त समागम’ पुस्तकसे