।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
ज्येष्ठ अमावस्या, वि.सं.२०७३, रविवार
कल्याणकारी प्रश्नोत्तर



(गत ब्लॉगसे आगेका)

नचिकेताने यमराजसे आत्मविषयक प्रश्न किया तो यमराजने उसको कई भोगोंका लालच दिया कि तुम सैंकड़ों वर्षोंकी आयुवाले पुत्र-पौत्रोंको माँग लो, भूमण्डलका राज्य माँग लो, इच्छित मृत्युका माँग लो, मनुष्यलोक तथा स्वर्गलोकके सम्पूर्ण भोगोंको माँग लो, जो चाहे सो माँग लो, पर आत्मविषयक प्रश्न मत करो । परन्तु नचिकेताने दृढ़तासे कहा कि ये सब वस्तुएँ आपक पास ही रहें, मुझे तो आपसे आत्मविषयक प्रश्नका उत्तर ही चाहिये । इसके सिवाय दूसरी काई भी वस्तु मुझे नहीं चाहिये‒‘नान्यं नस्मान्नचिकेता वृणीते’ (कठोपनिषद् १ । १ । २९) । इस प्रकार उत्कट अभिलाषा होनेसे ही परमात्मतत्त्व मिलता है ।

परमात्मतत्त्व इतना सस्ता है कि उत्कट इच्छामात्रसे मिल जाता है, पर संसारकी वस्तु इच्छामात्रसे नहीं मिलती । कारण कि सांसारिक वस्तुएँ जन्य (पैदा होनेवाली) हैं; जब निर्मित होंगी, तब मिलेंगी, पर परमात्मा जन्य नहीं हैं । इच्छा भी करें, उद्योग भी करें और प्रारब्ध भी साथ हो, तब सांसारिक वस्तु मिलती है । परन्तु परमात्माकी प्राप्तिमें न उद्योगकी जरूरत है, न प्रारब्धकी जरूरत है, केवल उत्कट इच्छामात्रकी जरूरत है । कारण कि परमात्मतत्त्व प्रकृतिसे अतीत है, फिर वह प्राकृत क्रिया और पदार्थसे कैसे मिल जायगा ? उत्कट अभिलाषा स्वयंमें होती है अर्थात् यह स्वयंकी भूख है और यह भूख जाग्रत् होती है असत्‌को महत्त्व न देनेसे ।

संसारकी इच्छा न करनेपर वस्तुओंकी कमी नहीं होगी, जीनेकी कमी नहीं होगी, धनकी कमी नहीं होगी, प्रत्युत जो हमें मिलनेवाला है, वह अवश्य मिलेगा‒‘यदस्मदीयं न हि तत्परेषाम्’ (गरुडपुराण, आचार ११३ । ३२) ‘जो हमारा है, वह दूसरोंका नहीं हो सकता ।’ हमारे भाग्यकी चीज दूसरेको कैसे मिल जायगी ? हमें आनेवाला बुखार दूसरेको कैसे आ जायगा ? संसारकी वस्तु यदि मिलनेवाली है तो बिना इच्छाके भी मिलेगी और नहीं मिलनेवाली है तो कितनी ही इच्छा करें, नहीं मिलेगी । परन्तु परमात्मतत्त्वकी उत्कट अभिलाषा होगी तो वह अवश्यमेव मिलेगा ।

प्रश्नअगर परमात्मतत्त्वका बोध हो जाय तो फिर क्या करना चाहिये ?

स्वामीजीपरमात्मतत्त्वका बोध होनपर कुछ करना, जानना और पाना बाकी रहता ही नहीं ! अतः बोध होनपर क्या करे‒यह प्रश्न ही पैदा नहीं होता । फिर भी यह कहा जा सकता है कि बोध होनेपर चुप रहना चाहिये । इस विषयमें एक कहानी है ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘सन्त समागम’ पुस्तकसे