।। श्रीहरिः ।।



आजकी शुभ तिथि
ज्येष्ठ शुक्ल प्रतिपदा, वि.सं.२०७३, सोमवार
कल्याणकारी प्रश्नोत्तर



(गत ब्लॉगसे आगेका)


एक राजाको तत्त्वबोध हो गया । राज्यमें दूसरा कोई जाननेवाला है कि नहीं‒यह पता लगानेके लिये उसने अपने आदमियोंको आज्ञा दी कि तुमलोग अच्छे-अच्छे सन्त-महात्मा, विद्वान् आदिसे पूछकर इस प्रश्नका उत्तर लिखकर लाओ कि किसीको बहुत बढ़िया चीज मिल जाय तो वह क्या करे ? राजाके आदमियोंने कइयोंके पास जाकर इस प्रश्नका उत्तर पूछा । किसीने कहा कि उस चीजको तिजोरीमें सँभालकर रख दो, किसीने कहा कि किसीपर भी विश्वास करके वह चीज उसे न दे, आदि-आदि । उस राज्यमें एक धान बेचनेवाला बनिया था । उसस पूछा तो उसने कहा कि बढ़िया चीज मिल जाय तो हल्ला क्यों करे ? यह बात राजाके पास पहुँची तो उसने समझ लिया कि यह बनिया ठीक जाननेवाला है । राजा उससे मिलनेके लिये उसके घर गया । बनियेने राजाका आदरपूर्वक बैठाया और हाथ जोड़कर खड़ा हो गया । राजाने कहा कि तुम जो चाहो सो माँग लो । राजाका विचार था कि यह अधिक-से-अधिक राज्य माँग सकता है तो एस आदमीका देनेमें राज्यका भला ही है । बनियेने कहा कि पहले वचन दो कि जो माँगूँगा, वह आप देंगे । राजाने वचन दे दिया कि हाँ, जो माँगोगे, वह मैं जरूर दूँगा । बनियेने कहा कि आगेसे आप तो यहाँ आना मत और मुझे बुलाना मत । आप आओगे या मुझे बुलाओगे तो लोग मेरे पीछे पड़ जायेंगे कि तुम राजासे कहकर मेरा यह काम करवा दो, वह काम करवा दो । राजाने आश्चर्य किया कि इसने यह क्या माँगा । बनियेने कहा कि जो मेरे मनमें आया, वह माँग लिया । मैंने आपके आनेके लिये और मेरेको बुलानेके लिये ही मना किया है, मेरे आनके लिये तो मना किया नहीं है । जब मुझे जरूरत होगी, तब मैं आपके पास आकर आपसे मिल लूँगा । अतः तत्त्वबोध होनेपर चुप रहना चाहिये, हल्ला नहीं करना चाहिये ।

नारायण !     नारायण !!     नारायण !!!

‒‘सन्त समागम’ पुस्तकसे

हम जैसा चाहते हैं, वैसे ही भगवान् हमें मिलते हैं । दो भक्त थे । एक भगवान् श्रीरामका भक्त था, दूसरा भगवान् श्रीकृष्णका । दोनों अपने-अपने भगवान् (इष्टदेव)-को श्रेष्ठ बतलाते थे । एक बार वे जंगलमें गये । वहाँ दोनों भक्त अपने-अपने भगवान्‌को पुकारने लगे । उनका भाव यह था कि दोनोंमेंसे जो भगवान् शीघ्र आ जायँ वही श्रेष्ठ हैं । भगवान् श्रीकृष्ण शीघ्र प्रकट हो गये । इससे उनके भक्तने उन्हें श्रेष्ठ बतला दिया । थोड़ी देरमें भगवान् श्रीराम भी प्रकट हो गये । इसपर उनके भक्तने कहा कि आपने मुझे हरा दिया; भगवान् श्रीकृष्ण तो पहले आ गये, पर आप देरसे आये, जिससे मेरा अपमान हो गया ! भगवान् श्रीरामने अपने भक्तसे पूछा‒‘तूने मुझे किस रूपमें याद किया था ? भक्त बोला‒‘राजाधिराजके रूपमें ।’ तब भगवान् श्रीराम बोले‒‘बिना सवारीके राजाधिराज कैसे आ जायँगे । पहले सवारी तैयार होगी, तभी तो वे आयँगे !’ कृष्ण-भक्तसे पूछा गया तो उसने कहा‒‘मैंने तो अपने भगवान्‌को गाय चरानेवालेके रूपमें याद किया था कि वे यहीं जंगलमें गाय चराते होंगे ।’ इसीलिये वे पुकारते ही तुरन्त प्रकट हो गये ।
(‒‘लक्ष्य अब दूर नहीं’ पुस्तके)