।। श्रीहरिः ।।




आजकी शुभ तिथि
ज्येष्ठ शुक्ल तृतीया, वि.सं.२०७३, मंगलवार
रम्भातृतीया
छूटनेवालेको ही छोड़ना है




॥ श्रीहरिः ॥
११-२-८१                                                                                            गोविन्द-भवन
कलकत्ता

ऐसी बढ़िया बात बताता हूँ, अगर मेरी बातपर ध्यान दें और थोड़ी-सी हिम्मत रखें तो बड़ा भारी लाभ होगा । इसमें किंचिन्मात्र सन्देह नहीं है । ऐसी बात है । आपलोगोंके सामने बहुत बार ऐसी बातें कही है कि भाई ! परमात्मतत्त्व हमारे साथ नित्य-निरन्तर है और संसारका सम्बन्ध निरन्तर ही छूट रहा है । जो आपको छोड़ रहा है और छूट रहा है, उस सम्बन्धको छोड़ना है और जिसका नित्य-निरन्तर सम्बन्ध बना ही रहता है, उसको पकड़ना है । इस बातको मैंने कई तरहसे कहा है । यह सार बात है एकदम । फिर सुन लें, जो चेतनतत्त्व परमात्मा परिपूर्ण है सामान्यरूपसे, वह सदा है ज्यों-का-त्यों परिपूर्ण है । सब देश, काल, वस्तु, व्यक्ति, परिस्थिति, घटनामें है ज्यों-का-त्यों रहता है । उसका संग कोई छोड़ सकता नहीं । किसीमें ताकत नहीं कि उसका संग छोड़ दे । वह सदैव सबके साथमें नित्य-निरन्तर रहता है । जाग्रत्, स्वप्न, सुषुप्ति, प्रलय, सर्ग आदि सब अवस्थाओंमें वह सबके साथ है ज्यों-का-त्यों बना हुआ है । उसकी प्राप्तिमें किंचिन्मात्र भी सन्देह नहीं है और उसकी प्राप्तिमें समयका, कालका भी काम नहीं है । वह नित्य प्राप्त है और संसार जिसको आप अपना मानते है । शरीर, संसार, पदार्थ‒ये कभी किसीके साथमें एक क्षण रहे नहीं, रहेंगे नहीं और रह सकते भी नहीं । जो नहीं रह रहा है, जा रहा है, बड़ी तेजीसे वियुक्त हो रहा है, उस वियुक्त होते हुएको छोड़ देना क्या बड़ी बात है ?

छोड़ना क्या है ? अपना न मानना, अपना सम्बन्ध न मानना । ‘केवल सम्बन्ध न मानना’‒इस बातको करना है और कुछ नहीं करना है । इनका मेरे साथ सम्बन्ध नहीं है और परमात्माके साथ हमारा सम्बन्ध अटल है ही । केवल इतनी बातको मान लेना है तो अभी प्राप्त हो जाय, अभी सम्बन्ध छूट जाय, अभी दुःख मिट जाय, इसमें सन्देह नहीं है । परमात्मतत्त्व प्राप्त है और संसार सदा ही अप्राप्त है । एक क्षण भी आपके साथ नहीं है । निरन्तर बह रहा है । इसपर आप डटे रहें । आपका एक यही काम है । अब मैं जो बात बताना चाहता हूँ । वह अब बताता हूँ । वह बात यह है कि यह जो आपके आज निश्चयमें बात आ गयी, इसको छोड़े नहीं, इसपर डटे रहें, लक्षण न देखें कि हमारेमें ये लक्षण नहीं घटे, हमारेमें यह नहीं आये । ‘अद्वेष्टा सर्वभूतानां मैत्रः करुण एव च’ आदि-आदि सिद्धोंके लक्षण है, वे हमारेमें नहीं आये । इस तरफ आप न देखें । अपने निर्णयपर डटे रहें । केवल यह बात ही आज आपको कहनी है । इसमें बेड़ा पार है । किञ्चिन्मात्र भी सन्देह नहीं है ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘भगवत्प्राप्ति सहज है’ पुस्तकसे